※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

महत्वपूर्ण बातें



अब आगे...........

 आप अपने काम को भी निष्काम बना सकते हैं निष्कामकर्म की दो बातें प्रधान हैं---

आसक्ति का त्याग, स्वार्थ का त्याग

 रुपया नहीं चाहकर मान बडाई चाहना भी तो फल चाहना ही है

 आमदनी से प्रसन्न क्यों होते हो ? यदि फल की इच्छा नहीं हो तो प्रसन्नता नहीं होगी

 हानि-लाभ में जो हर्ष शोक है वही चोर है ।

→ यदि कोई ऐसा समझे कि रुपया ज्यादा पैदा होने से मैं प्रसन्न होऊँगा तो मैं भी उनकी दृष्टि में एक तुच्छ आदमी हो गया

→ प्रेसमें घाटा लगे तो प्रसन्नता होनी चाहिये कि इससे लोगोंकी सेवा हो गयी

→ भगवानका तथा महापुरुषोंका तत्व भी नहीं जाने तो उसके नुक्सान हो रहा है

→ भगवान् की अपने पर बड़ी भारी दया समझनी चाहिये इससे बहुत लाभ है प्रसन्नता होगी

→ भगवान् हमारेपर बहुत प्रसन्न है,  भगवान् की प्रसन्नता को देख-देखकर बहुत प्रसन्न होता रहे

→ जहाँ नेत्र जायँ तथा मन जायँ, उस जगह भगवान् को देखो


शेष अगले ब्लॉग में......

नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !
[ पुस्तक 'दुःखोंका नाश कैसे हो ?' श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड १५६१, गीता प्रेस,गोरखपुर ]