अब आगे...........
→ आप अपने काम को भी निष्काम बना
सकते हैं । निष्कामकर्म की दो बातें प्रधान हैं---
आसक्ति का त्याग, स्वार्थ का त्याग
।
→ रुपया नहीं चाहकर मान बडाई
चाहना भी तो फल चाहना ही है ।
→ आमदनी से प्रसन्न क्यों होते
हो ? यदि फल की इच्छा नहीं हो तो प्रसन्नता नहीं होगी ।
→ हानि-लाभ में जो हर्ष शोक है
वही चोर है ।
→ यदि कोई ऐसा समझे कि रुपया
ज्यादा पैदा होने से मैं प्रसन्न होऊँगा तो मैं भी उनकी दृष्टि में एक तुच्छ
आदमी हो गया ।
→ प्रेसमें घाटा लगे तो
प्रसन्नता होनी चाहिये कि इससे लोगोंकी सेवा हो गयी ।
→ भगवानका तथा महापुरुषोंका तत्व
भी नहीं जाने तो उसके नुक्सान हो रहा है ।
→ भगवान् की अपने पर बड़ी भारी
दया समझनी चाहिये । इससे बहुत लाभ है प्रसन्नता होगी ।
→ भगवान् हमारेपर बहुत प्रसन्न
है, भगवान् की प्रसन्नता को देख-देखकर
बहुत प्रसन्न होता रहे ।
→ जहाँ नेत्र जायँ तथा मन जायँ,
उस जगह भगवान् को देखो ।
शेष अगले ब्लॉग में......
नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण
!
[ पुस्तक 'दुःखोंका नाश कैसे हो ?' श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड १५६१, गीता प्रेस,गोरखपुर ]
[ पुस्तक 'दुःखोंका नाश कैसे हो ?' श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड १५६१, गीता प्रेस,गोरखपुर ]