※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

महत्वपूर्ण बातें


अब आगे.......

 अपने कल्याण मे कोई शंका की बात नहीं है इस बातको याद करके निश्चिन्त एवं निर्भय रहे इस बातको लोहे की लकीर की तरह समझनी चाहिये कि उनकी हमारेपर बड़ी भारी दया है

 भगवान् की स्मृति होती है, उनकी तरफ हमारी वृत्ति जाती है यह अपने कल्याण में हेतु है

 दियासलाई में अग्नि की तरह भगवान् को सब जगह प्रत्यक्ष देखना चाहिये

 त्याग के भाव को हर समय याद रखो

 आपलोग पाँच-सात व्यक्ति मेरे मन के माफिक काम कर लेन तो दूध की तरह उफान आ जाय, फिर देखो

 गीता १८ ४६ हर समय याद रखना चाहिये

→ भगवान् की दया के लिये यह युक्ति है कि अपना जो कुछ समय भगवान् के काम में बीतता है वह दया है उसे ज्यों-ज्यों समझोगे त्यों-त्यों अच्छा काम बनता जायगा

→  यह नियम है कि हम भगवान् कि अपनेपर जितनी दया समझेंगे उतना ही अपना साधन बढेगा

→  भगवान् हम पर प्रसन्न है, यह आप मान लेन, इसमें आपका क्या लगता है खूब प्रसन्न रहना चाहिये कि भगवान् मेरेपर प्रसन्न है और अपने प्रसन्नता होने की जड़ है भगवान् की प्रसन्नता

→  आपलोग बराबर देखते हैं, मैं किसीको भी मन्दिर बनाने के लिये नहीं कहता हूँ मैं मन्दिर को मानता हूँ, मूर्तिपूजक हूँ तो भी मन्दिर के लिये नहीं कहता यह कहता हूँ कि घरपर पूजा करो अपने घरमें पूजा करने से पूरा घर पूजा करने लग जाता है मन्दिर की आय का पैसा प्राय: ठीक काम में नहीं लगता पुजारी प्राय: सौमेंसे पँचानबे आचारणहीन लोग हैं

शेष अगले ब्लॉग में.........

नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !
[ पुस्तक 'दुःखोंका नाश कैसे हो ?' श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड १५६१, गीता प्रेस,गोरखपुर ]