अब आगे.......
→ अपने कल्याण मे कोई शंका की बात नहीं है । इस बातको याद करके निश्चिन्त एवं निर्भय रहे । इस बातको लोहे की लकीर की तरह समझनी चाहिये कि उनकी हमारेपर बड़ी भारी दया है
।
→ भगवान् की स्मृति होती है,
उनकी तरफ हमारी वृत्ति जाती है यह अपने कल्याण में हेतु है ।
→ दियासलाई में अग्नि की तरह
भगवान् को सब जगह प्रत्यक्ष देखना चाहिये ।
→ त्याग के भाव को हर समय याद
रखो ।
→ आपलोग पाँच-सात व्यक्ति मेरे मन
के माफिक काम कर लेन तो दूध की तरह उफान आ जाय, फिर देखो ।
→ गीता १८ । ४६ हर समय याद रखना चाहिये ।
→ भगवान् की दया के लिये यह
युक्ति है कि अपना जो कुछ समय भगवान् के काम में बीतता है वह दया है । उसे ज्यों-ज्यों समझोगे त्यों-त्यों अच्छा काम बनता जायगा ।
→ यह नियम है कि हम भगवान् कि
अपनेपर जितनी दया समझेंगे उतना ही अपना साधन बढेगा ।
→ भगवान् हम पर प्रसन्न है, यह
आप मान लेन, इसमें आपका क्या लगता है । खूब प्रसन्न रहना चाहिये कि भगवान् मेरेपर प्रसन्न
है और अपने प्रसन्नता होने की जड़ है भगवान् की प्रसन्नता ।
→ आपलोग बराबर देखते हैं, मैं
किसीको भी मन्दिर बनाने के लिये नहीं कहता हूँ । मैं मन्दिर को मानता हूँ, मूर्तिपूजक हूँ तो भी मन्दिर के लिये नहीं कहता । यह कहता हूँ कि घरपर पूजा करो । अपने घरमें पूजा करने से पूरा घर पूजा करने लग जाता
है । मन्दिर की आय का पैसा प्राय: ठीक काम में नहीं लगता । पुजारी प्राय: सौमेंसे पँचानबे आचारणहीन लोग हैं ।
शेष अगले ब्लॉग में.........
नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण
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[ पुस्तक 'दुःखोंका नाश कैसे हो ?' श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड १५६१, गीता प्रेस,गोरखपुर ]
[ पुस्तक 'दुःखोंका नाश कैसे हो ?' श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड १५६१, गीता प्रेस,गोरखपुर ]