※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 30 सितंबर 2012

महत्वपूर्ण बातें




अब आगे......

→ जिसका काम परमात्मा बिना नहीं चलता, उसें परमात्मा ही मिलेंगे

→ जब भगवान् के बिना काम नहीं चलता तब भगवान् को आना ही पड़ता है

→ चाहे सब नाराज हो जायँ पर भगवान् को नाराज करने से काम नहीं चलता

→ एक तरफ परमेश्वर तथा एक तरफ यह संसार, फिर भगवान् को कैसे छोड़ोगे

→ समलोष्टाश्मकांचन यह बात भगवान् कह रहे हैं तब हमें यह बात तो माननी ही चाहिये लोभ त्यागकर उत्तम व्यवहार करो

→ रुपया त्यागने से भगवान् मिलते हैं रुपया अपने पास थोड़ा है तो और भी इकठ्ठा हो जायगा, किन्तु यह रुपया हमारे क्या काम आयेगा ? इसके त्याग से भगवान् मिलते हैं जो सदा काम आनेवाले हैं

→ जिसके त्याग से भगवान् मिलें, जिसकी कुछ कीमत नहीं है, ऐसा समझकर इस चीज को छोड़ दो

→ भगवान् के लिये समय दिया उनके लिये झूठ नहीं बोले

→ एक तरफ लाख रुपया है, एक तरफ भगवान् के नामका उच्चारण है नामका जप क्यों करें ? इससे भगवान् मिलते हैं

→ निष्काम भाव से व्यवहार करने से भगवान् मिलते हैं

→ निष्काम कर्म से भगवान् मिलते हैं, यह बात समझमें आ जाय तब कर्म करनेमें भजनसे भी अधिक प्रसन्नता होगी यह काम विश्वास करके करो तो इससे बहुत लाभ होगा एक बार इसमें विश्वास करके काम करनेमें प्रसन्नता रहती है

→ ऊँचे दर्जे के साधक और भक्त के लिये कर्म भार रूप नहीं है उनको तो कर्म करने में प्रसन्नता ही होती है, जैसे-भजन ध्यान करने में प्रसन्नता रहती है, इसी प्रकार कर्म करने में प्रसन्नता रहती है

→ आखिर में विजय तो अपनी ही होनी हैं, क्योंकि अपनी सहायता भगवान् करने वाले हैं अपने तो भगवान् तो साथी है, इसलिये इन काम-क्रोध को मारना चाहिये

→ प्रभु की अपने पर बड़ी भारी दया है

→ भगवान् हमारे पर बहुत प्रसन्न है प्रसन्नता किस बात की है कि भगवान् हमपर बहुत प्रसन्न हैं, दूसरी प्रसन्नता इस बात की है कि भगवान् की याद हमें भगवान् ने हर समय दी है

→ अपना कल्याण होने में कुछ शंका नहीं है अपना तो उद्धार होगा ही, उनकी दयाके सामने यह कौन बड़ी बात है

→ उनकी दया को याद करके क्षण-क्षण में मुग्ध होता रहे

→ खूब बेपरवाह रहे बिना हुए भी आनन्द माने समझे आनन्द का भंडार भरा पड़ा है परमात्मा आनन्दमय हैं, मैं भी आनंदमय हूँ

→ भगवान् की विस्मृतिका पश्चाताप बहुत अच्छा है, परन्तु असली पश्चाताप वह है, जिसमें उनको कभी भूले ही नहीं

→ पचास आदमी एक बातको ठीक है बिना समझे लिखते गए तो क्या हुआ ? उसका क्या मूल्य है ? जो रहस्य समझकर लिखता है वही ठीक है

→ स्रोत्रिय-ब्रह्मनिष्ठ बतावे वही धर्म है दस हजार लोग बतावें वह धर्म नहीं है

→ कोई भी संकल्प आये उसको आदर नहीं देना चाहिये

→ दोषको छोड़कर गुणों को ग्रहण करे दोषों को छोड़ना कोई कठिन नहीं है

→ भगवान की प्राप्ति तो अपने हाथ की बात है अपने घर कोई भोजन करने आये तो उसे भगवान् समझकर भोजन कराओ
नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !
[ पुस्तक 'दुःखोंका नाश कैसे हो ?' श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड १५६१, गीता प्रेस,गोरखपुर ]