संत तुकाराम |
अब आगे.....
उपर्युक्त
विवेचन से सिद्ध हो जाता है कि मांस भक्षण सभी प्रकार से त्यागके योग्य है | मेरा
नम्र निवेदन है कि जो भाई प्रमाद वश मांस खाते हों वे इसपर भली-भांति विचारकर
मनुष्यत्व के नाते, दया और न्याय के नाते, शरीर-स्वास्थ्य और धर्म की रक्षा के लिए
और भगवान की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए, इन्द्रिय संयम कर मांस-भक्षण सर्वथा
छोड़कर, सब जीवों को अभयदान देकर स्वयं अभयपद प्राप्त करने की योग्यता-लाभ करें |
जो भाई मेरी प्रार्थना पर ध्यान देकर मांस-भक्षण का त्याग कर देंगे, उनका मैं
आभारी रहूँगा और उनकी बड़ी दया समझूँगा | महात्मा तुलाधार श्रीजाजलिमुनि से कहते
हैं-
यस्मान्नोद्विजते
भूतं जातु किञ्चित् कथञ्चन |
अभयं
सर्वभूतेभ्य: स प्राप्नोति सदा मुने ||
यस्मादुद्विजते विद्वन् सर्वलोको वृकादिव |
क्रोशतस्तीरमासाद्य यथा सर्वे जलेचरा: ||
तपोभिर्यज्ञदानैश्र्च
वाक्ये: प्रज्ञाश्रितैस्तथा |
प्राप्नोत्यभयदानस्य
यद्यत्फलमिहाश्रुते ||
लोके
य: सर्वभूतेभ्यो ददात्यभयदक्षिणाम् |
स
सर्वयज्ञैरीजान: प्राप्नोत्यभयदक्षिणाम् |
न
भूतानामहिंसाया ज्यायान् धर्मोऽस्ति कश्र्चन || (महा० शांति० २६२|२४|,२५,२८,२९,३०)
‘हे
मुनिवर ! जिस मनुष्य से किसी भी प्राणी को किसी प्रकार कष्ट नहीं पहुंचता उसे किसी
भी प्राणी से भय नहीं रह जाता | जिस प्रकार बडवानल से भयभीत होकर सभी जलचर जंतु
समुद्र के तीर पर इकट्ठे हो जाते है उसी प्रकार हे विद्वद्वर ! जिस मनुष्य से भेड़िये की भांति सब
लोग डरते हैं वह स्वयं भय को प्राप्त होता है |’
‘अनेक
प्रकार के तप, यज्ञ और दान से तथा प्रज्ञा युक्त उपदेश से जो फल मिलता है वही फल
जीवों को अभयदान देने से प्राप्त होता है |’
‘जो
मनुष्य इस संसार के सभी प्राणियों को अभयदान दे देता है; वह सारे यज्ञो का
अनुष्ठान कर चुकता है बदले में उसे सबसे अभय प्राप्त होता है, अतएव प्राणियों को
कष्ट न पहुंचाने से बढ़कर कोई दूसरा धर्म ही नहीं है |’
नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !
[ पुस्तक 'तत्व-चिन्तामणि` श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड ६८३, गीता प्रेस,गोरखपुर ]
[ पुस्तक 'तत्व-चिन्तामणि` श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड ६८३, गीता प्रेस,गोरखपुर ]