शक्ति के रूपमें ब्रह्मकी उपासना
शक्ति के विषयमें कुछ लिखने के
लिये भाई हनुमान प्रसाद पोद्दारने प्रेरणा की, किन्तु शक्ति शब्द बहुव्यापक होनेके
कारण इसके रहस्य को समझाने को मैं अपने में शक्ति नहीं देखता; तथापि उनके आग्रहसे
अपनी साधारण बुद्धि के अनुसार यत्किंचित लिख रहा हूँ ।
शास्त्रों मे 'शक्ति' शब्द के प्रसंगानुसार अलग-अलग
अर्थ किये गये हैं । तांत्रिक लोग इसीको पराशक्ति कहते हैं और इसीको
विज्ञानानंदघन ब्रह्म मानते हैं । वेद, शास्त्र, उपनिषद, पुराण आदि मे भी शक्ति शब्द
का प्रयोग देवी, पराशक्ति, ईश्वरी, मूलप्रकृति आदि नामोंसे विज्ञानानन्दघन निर्गुण
ब्रह्म एवं सगुण ब्रह्मके लिये भी किया गया है | विज्ञानानन्दघन ब्रह्मका तत्व
अतिसूक्ष्म एवं गुह्य होने के कारण शास्त्रों मे उसे नाना प्रकार से समझाने की
चेष्टा की गयी है । इसलिये 'शक्ति' नामसे ब्रह्म की उपासना करनेसे भी
परमात्मा की प्राप्ति होती है । एक ही परमात्मा की निर्गुण, सगुण, निराकार, साकार,
देव, देवी, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, शक्ति,राम, कृष्ण, आदि अनेक नाम-रूपसे भक्तलोग
उपासना करते हैं । रहस्य को जानकार शास्त्र और आचार्य के बतलाये हुए
मार्ग के अनुसार उपासना करनेवाले सभी भक्तों को उसकी प्राप्ति हो सकती है । उस दयासागर प्रेममय सगुण-निर्गुण रूप परमेश्वरको सर्वोपरि, सर्वज्ञ,
सर्वशक्तिमान्, सर्वव्यापी, सम्पूर्ण, गुणाधार, निर्विकार, नित्य, विज्ञानानन्दघन
परब्रह्म, परमात्मा समझकर श्रद्धापूर्वक निष्काम प्रेमसे उपासना करना ही उसके
रहस्य को जानकर उपासना करना है, इसलिये श्रद्धा और प्रेम-पूर्वक उस
विज्ञानानन्दस्वरुपा महाशक्ति भगवती देवी की उपासना करनी चाहिये । वह निर्गुणस्वरूपा देवी जीवोंपर दया करके स्वयं ही सगुणभावको प्राप्त होकर
ब्रह्मा, विष्णु और महेशरूपसे उत्पत्ति, पालन और संहार कार्य करती है । शेष अगले ब्लॉग में...
नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण
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[ पुस्तक 'तत्व-चिन्तामणि` श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड ६८३, गीता प्रेस,गोरखपुर ]
[ पुस्तक 'तत्व-चिन्तामणि` श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड ६८३, गीता प्रेस,गोरखपुर ]
