※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

शक्तिका रहस्य


 
 
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उपनिषदोमें इसीको पराशक्तिके नामसे कहा गया है

 तस्या एव ब्रह्मा अजीजनत् विष्णुरजीजनत् रुद्रोऽजीजनत् सर्वे मरुद्गणा अजीजनन् गन्धर्वाप्सरसः किन्नरा वादित्रवादिनः समन्तादजीजन् भोग्यमजीजनत् सर्वमजीजनत् सर्वशक्तिमजीजनत् अंडजं स्वेदजमुद्भिज्जं जरायुजं यत्किंचैतत्प्राणि स्थावरजंगमं मनुष्यमजीजनत् सैषा परा शक्ति:
( ब्रह्मचोपनिषद् )

  उस पराशक्ति से ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र उत्पन्न हुए उसी से सब मरुद्गण, गन्धर्व, अप्सराएँ और बाजा बजानेवाले किन्नर सब ओर से उत्पन्न हुए समस्त भोग्य पदार्थ और अंडज, स्वेदज, उद्भिज्ज, जरायुज जो कुछ भी स्थावर, जंगम मनुष्यादि प्राणीमात्र उसी पराशक्ति से उत्पन्न हुए ऐसी वह पराशक्ति है । ऋग्वेदमें भगवती कहती है----

अहं   रुद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरुत     विश्वदेवैः ।
अहं मित्रावरुणोभा बिभर्म्यहमिन्द्राग्नी अहमश्विनोभा ।।(ऋग्वेद अष्टक८११)

अर्थात `मैं रूद्र, वसु, आदित्य और विश्वदेवों के रूप में विचरती हूँ वैसे ही मित्र, वरुण, इन्द्र, अग्नि, और अश्वनीकुमारों के रुपको धारण करती हूँ `

 ब्रह्मसूत्र में भी कहा है कि---
`सर्वोपेता तद्दर्शनात्`   ( द्वि०अ० प्रथम पाद ३०)

 ` वह पराशक्ति सर्वसामर्थ्यंसे युक्त है, क्योंकि यह प्रत्यक्ष देखा जाता है `

   यहाँ भी ब्रह्म का वाचक स्त्रीलिंग शब्द आया है ब्रह्मकी व्याख्या शास्त्रों में स्त्रीलिंग, पुंलिङ्ग, और नपुसंकलिंग आदि सभी लिंगो में कि गयी है इसलिये महाशक्ति के नाम से भी ब्रह्मा कि उपासना की जा सकती है बंगाल में श्रीरामकृष्णपरमहंस ने माँ, भगवती, शक्ति के रूप में ब्रह्मा की उपासना की थी वे परमेश्वर को माँ, तारा, काली, आदि नामों से पुकारा करते थे और भी बहुत से महात्मा पुरुषों ने स्त्रीवाचक नामों से विज्ञानानंदघन परमात्मा की उपासना की है ब्रह्मकी महाशक्ति के रूप में श्रद्धा, प्रेम, और निष्काम भाव से उपासना करने से परब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है शेष अगले ब्लॉग में.....

नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !
[ पुस्तक 'तत्व-चिन्तामणि` श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड ६८३, गीता प्रेस,गोरखपुर ]