अब आगे......
उपनिषदोमें इसीको पराशक्तिके नामसे
कहा गया है ।
तस्या एव ब्रह्मा अजीजनत् । विष्णुरजीजनत् । रुद्रोऽजीजनत् । सर्वे मरुद्गणा अजीजनन् । गन्धर्वाप्सरसः किन्नरा वादित्रवादिनः समन्तादजीजन् । भोग्यमजीजनत् । सर्वमजीजनत् । सर्वशक्तिमजीजनत् ।अंडजं स्वेदजमुद्भिज्जं जरायुजं यत्किंचैतत्प्राणि स्थावरजंगमं मनुष्यमजीजनत् । सैषा परा शक्ति: ।
( ब्रह्मचोपनिषद् )
उस पराशक्ति से ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र
उत्पन्न हुए । उसी से सब मरुद्गण, गन्धर्व, अप्सराएँ और बाजा
बजानेवाले किन्नर सब ओर से उत्पन्न हुए । समस्त भोग्य पदार्थ और
अंडज, स्वेदज, उद्भिज्ज, जरायुज जो कुछ भी स्थावर, जंगम मनुष्यादि प्राणीमात्र उसी
पराशक्ति से उत्पन्न हुए । ऐसी वह पराशक्ति है । ऋग्वेदमें भगवती कहती है----
अहं
रुद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरुत विश्वदेवैः ।
अहं मित्रावरुणोभा बिभर्म्यहमिन्द्राग्नी
अहमश्विनोभा ।।(ऋग्वेद अष्टक८।७।११)
अर्थात `मैं रूद्र, वसु, आदित्य और
विश्वदेवों के रूप में विचरती हूँ । वैसे ही मित्र, वरुण, इन्द्र, अग्नि, और
अश्वनीकुमारों के रुपको धारण करती हूँ ।`
ब्रह्मसूत्र में भी कहा है कि---
`सर्वोपेता तद्दर्शनात्` ( द्वि०अ० प्रथम पाद ३०)
` वह पराशक्ति सर्वसामर्थ्यंसे युक्त है,
क्योंकि यह प्रत्यक्ष देखा जाता है ।`
यहाँ भी ब्रह्म का वाचक स्त्रीलिंग
शब्द आया है । ब्रह्मकी व्याख्या शास्त्रों में स्त्रीलिंग,
पुंलिङ्ग, और नपुसंकलिंग आदि सभी लिंगो में कि गयी है । इसलिये महाशक्ति के नाम से भी ब्रह्मा कि उपासना की जा सकती है । बंगाल में श्रीरामकृष्णपरमहंस ने माँ, भगवती, शक्ति के रूप में ब्रह्मा की
उपासना की थी । वे परमेश्वर को माँ, तारा, काली, आदि नामों से
पुकारा करते थे । और भी बहुत से महात्मा पुरुषों ने स्त्रीवाचक नामों
से विज्ञानानंदघन परमात्मा की उपासना की है । ब्रह्मकी महाशक्ति के रूप में श्रद्धा, प्रेम, और निष्काम भाव से उपासना करने
से परब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है । शेष अगले ब्लॉग में.....
नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण
!
[ पुस्तक 'तत्व-चिन्तामणि` श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड ६८३, गीता प्रेस,गोरखपुर ]
[ पुस्तक 'तत्व-चिन्तामणि` श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड ६८३, गीता प्रेस,गोरखपुर ]