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शक्ति और शक्तिमान् की उपासना—बहुत
से सज्जन इसको भगवान् की ह्लादिनी शक्ति मानते हैं । महेश्वरी,जगदीश्वरी, परमेश्वरी भी इसको कहते हैं । लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, राधा,सीता आदि सभी इस शक्ति के ही रूप हैं । माया, महामाया, मूलप्रकृति, विद्या,अविद्या, आदि भी इसीके रूप है । परमेश्वर शक्तिमान् है और भगवती परमेश्वरी उसकी शक्ति है । शक्तिमान से शक्ति अलग होने पर भी अलग नहीं समझी जाती । जैसे अग्नि कि दाहिका शक्ति अगनी से भिन्न नहीं है । यह सारा संसार शक्ति और शक्तिमान से परिपूर्ण है और उसीसे, इसकी उत्पति,
स्थिति और प्रलय होते हैं । इस प्रकार समझकर वे लोग शक्तिमान और शक्ति युगल कि
उपासना करते हैं । प्रेमस्वरूपा भगवती ही भगवान् से सुगमता से मिला
सकती है । इस प्रकार समझकर कोई-कोई केवल भगवती की ही उपासना
करते हैं । इतिहास-पुराणादि में सब प्रकार के उपासकों के लिये
प्रमाण मिलते हैं ।
इस महाशक्तिरूपा जगज्जननी कि उपासना लोग नाना
प्रकार से करते हैं । कोई तो इस महेश्वरी को ईश्वर से भिन्न समझते हैं और
कोई अभिन्न मानते हैं । वास्तव में तत्व को समझ लेना चाहिये । फिर चाहे जिस प्रकार उपासना करे कोई हानि नहीं है । तत्व को समझकर श्रद्धाभक्तिपूर्वक उपासना करने से सभी उस एक प्रेमास्पद
परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं ।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर की उपासना—श्रुति,
स्मृति, पुराण, इतिहासादी शास्त्रों में इस गुणमयी विद्या-अविद्यारुपा मायाशक्ति
को प्रकृति, मूल, प्रकृति, महामाया, योगमाया आदि अनेक नामों से कहा है । उस माया शक्ति कि व्यक्त और अव्यक्त यानी साम्यावस्था तथा विकृतावस्था दो
अव्सथाएँ है । उसे कार्य कारण एवं व्याकृत, अव्याकृत भी कहते हैं ।
तेईस तत्वों के विस्तारवाला यह सारा संसार तो उसका व्यक्त स्वरूप है । जिससे सारा संसार उत्पन्न होता है और जिसमें यह लीन हो जाता है वह उसका
अव्यक्त स्वरुप है ।
अव्यक्ताद्व्यक्तयः सर्वा: प्रभवन्त्यहरागमे ।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके ।। ( गीता ८ ।१८ )
अर्थात्
`सम्पूर्ण दृश्यमात्र भूतगण ब्रह्मा के दिन के प्रवेशकालमें अव्यक्त से अर्थात्
ब्रह्माके सूक्ष्म शरीर से उत्पन्न होते हैं और ब्रह्माकी रात्रि के प्रवेशकाल में
उस अव्यक्त नामक ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर में ही लय होते हैं ।` शेष अगले ब्लॉग में.....
नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण
!
[ पुस्तक 'तत्व-चिन्तामणि` श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड ६८३, गीता प्रेस,गोरखपुर ]
[ पुस्तक 'तत्व-चिन्तामणि` श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड ६८३, गीता प्रेस,गोरखपुर ]