※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012

व्यापारसुधारकी आवश्यकता



अब आगे...

 व्यापार में प्रधानतः क्रय-विक्रय होता है, क्रय विक्रय के कई साधन है, कोई चीज तौलपर ली-दी  जाती है, कोई नाप पर, तो कोई गिनती पर नमूना देखना-दिखलाना भी एक साधन होता है जो दूसरों के लिये या दूसरों का माल खरीदते बेचते हैं वे आढ़तिया कहलाते हैं और जो दुसरोंसे दुसरोंको ठीक भाव में किसी का पक्ष न कर उचित दलाली पर माल दिला देते हैं वे दलाल कहलाते हैं इन्ही सब तरीकों से व्यापार होता है वस्तुओं के खरीदने बेचने में तौल-नाप और गिनती आदिसे कम देना या अधिक लेना, चीज बदलकर या एक वस्तुमें दूसरी (ख़राब) चीज मिलकर दे देना या धोखा देकर अच्छी ले लेना, नमूना दिखाकर उसको घटिया चीज देना और धोखे से बढ़िया लेना, नफा, आढ़त, दलाली ठहराकर उससे अधिक लेना या धोखे से कम देना, दलाली या आढ़त के लिये झूठी बातें समझा देना अथवा  झूठ, कपट, चोरी, जबरदस्ती, या अन्य किसी प्रकारसे दुसरे का हक़ मार लेना यह सब व्यापार के दोष है आजकल व्यापार में यह दोष बहुत ज्यादा आ गए हैं किसी भी दोष का कोई भी ख्याल न कर किसी तरह भी धन पैदा कर लेने वाला ही आजकल समझदार और चतुर समझा जाता है समाज में उसी कि प्रतिष्ठा होती है धन कि कमाई के सामने उसकी सारी चोरियां घरवाले और समाज सह लेता है इसीसे चोरी और झूठ-कपट कि प्रवृति दिनोंदिन बढ़ रही है व्यापार में झूठ, कपट नहीं करना चाहिये या इसके बिना किये भी धन पैदा हो सकता है ऐसी धारणा ही प्राय: लोप हो चली है इसीसे जिस तरफ देखा जाता है उसी तरफ पोल नजर आती है

  अधिकांश भारतीय मीलों के साथ काम करने में व्यापारियों को यह डर बना ही रहता है कि तेज बाजार में हमें या तो नमूने के अनुसार क्वालिटी का माल नहीं मिलेगा या ठीक समय पर नहीं मिलेगा कपड़ेकी मीलों में जिस तरह कि कार्यवाहीयां होती सुनी गयी है, यदि वे वास्तव में सत्य है तो हमारे व्यापारमें बड़ा धक्का पहुंचानेवाली है रुई खरीदने में मैनेजिंग एजेंट लोग बड़ी गड़बड़ किया करते हैं

 रुई के बाजार में घटबढ़ बहुत रहती है रुई का सौदा करने पर भाव बढ़ जाता है तो एजेंट रुई अपने खाते में रख लेते हैं और यदि घट जाता है तो अपने लिये अलग खरीदी हुई रुई भी मौका लगाने पर मील खाते मे नोंध देते हैं वजन बढ़ने के लिये कपड़ो में मांडी लगानेमें तो अहमदाबाद मशहूर है रुई का भाव बढ़ जाने पर सुतमें भी कमी कर दी जाती है । अनेक तरह के बहाने बताकर कांट्रेक्टका माल भी समय पर नहीं दिया जाता प्रायः लम्बाई-चौड़ाई में भी गोलमाल कर दी जाती है सुतमें वजन भी कम दे दिया जाता है, इन्ही कारणोंसे बहुत-सी मीलों कि साख नहीं जमती पक्षान्तरमें विलायती वस्त्र-व्यवसाय भारत के लिये महान घातक होनेपर भी कोंट्राक्टकी शर्तों के पालनमें अधिक उदारता और सच्चाई रहने के कारण बहुत-से व्यापारी उस काम को छोड़ना नहीं चाहते यहाँ के माल के दाम ज्यादा रहने के कारण अत्यधिक लोभ की मात्रा ही है शेष अगले ब्लॉग में...
 नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !
[ पुस्तक तत्त्व-चिन्तामणि श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड ६८३, गीता प्रेस,गोरखपुर ]