※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 21 अक्तूबर 2012

शक्तिका रहस्य


अब आगे........
त्रिगुणामयी प्रकृति और परमात्मा का परस्पर आधेय और आधार एवं व्याप्य-व्यापक-सम्बन्ध है प्रकृति आधेय और परमात्मा आधार है प्रकृति व्याप्य और परमात्मा व्यापक है नित्य चेतन, विज्ञानानंदघन परमात्मा के किसी एक अंश में चराचर जगत के सहित प्रकृति है जैसे तेज, जल, पृथ्वी के सहित वायु, आकाश के आधार है वैसे ही यह परमात्मा के आधार है जैसे बादल आकाश से व्याप्त है वैसे ही परमात्मा से प्रकृतिसहित यह सारा संसार व्याप्त है
यथाकाशस्थितो नित्यं वायु: सर्वत्रगो महान्
तथा सर्वाणि    भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय ।। (गीता ९६)

  अर्थात् ` जैसे आकाश से उत्पन्न हुआ सर्वत्र विचरने-वाला महान् वायु सदा ही आकाश में स्थित है, वैसे ही मेरे संकल्पद्वारा उत्पत्ति वाले होनेसे सम्पूर्ण भूत मेरे में स्थित है-ऐसे जान `

अथवा   बहुनैतेन    किं   ज्ञातेन    तवार्जुन
विष्टभ्याहमिदं  क्रिंत्स्रमेकांशेन स्थितो जगत् ।। (गीता १०४२)

 अर्थात ` अथवा हे अर्जुन ! इस बहुत जानने से तेरा क्या प्रयोजन है ? मैं इस सम्पूर्ण को अपनी योगमाया के एक अंश मात्र से धारण करके स्थित हूँ `

ईशा वास्यमिदँ सर्वं यत्किंच जगत्यां जगत् ( ईश०१)

 अर्थात् `त्रिगुणामयी मायामें स्थित यह सारा चराचर जगत् ईश्वर से व्याप्त है `

 किन्तु उस त्रिगुणमयी मायासे वह लिपायमान नहीं होता क्योंकि विज्ञानानंदघन परमात्मा गुणातीत, केवल और सबका साक्षी है

एको   देव: सर्वभूतेषु गूढ़: सर्वव्यापी  सर्वभूतान्तरात्मा
कर्माध्यक्ष:  सर्वभूताधिवासः साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च ।। (श्वेता०६११)

 अर्थात् ` जो देव सब भूतों में छिपा हुआ, सर्वव्यापक, सर्वभूतों का अन्तरात्मा, कर्मों का अधिष्ठाता, सब भूतों का आश्रय, सबका साक्षी, चेतन, केवल और निर्गुण यानी सत्व, रज, तम---इन तीनों गुणों से परे है वह एक है ` शेष अगले ब्लॉग में.......

नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !
[ पुस्तक 'तत्व-चिन्तामणि` श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड ६८३, गीता प्रेस,गोरखपुर ]