अब आगे........
`सर्व खल्विदं ब्रह्म` (छान्दोग्य०३।१४।१)
`वासुदेव सर्वामिति` (गीता ७।१९ )
`सदसच्चाहमर्जुन` (गीता ९।१९)
तथा माया ईश्वर कि शक्ति है और शक्तिमान् से
शक्ति अभिन्न होती है । जैसे अग्नि की दाहिका शक्ति अग्नि से अभिन्न है,
इसलिये परमात्मा से इसे भिन्न भी नहीं कह सकते ।
चाहे जैसे तो तत्त्व को समझकर उस
परमात्मा कि उपासना करनी चाहिये । तत्त्व को समझकर की हुई उपासना ही सर्वोत्तम है । जो उस परमेश्वर तत्त्व से समझ जाता है, वह उसको एक क्षण भी नहीं भूल सकता, सब
कुछ परमात्मा ही है । इस प्रकार समझनेवाला परमात्मा को कैसे भूल सकता है ?
अथवा जो परमात्मा को सारे संसार से उत्तम
समझता है वह भी परमात्मा को छोड़कर दूसरी वस्तु को कैसे भज सकता है ? यदि भजता है
तो परमात्माके तत्त्व को नहीं जानता है । क्योंकि यह नियम है कि
मनुष्य जिसको उत्तम समझता है उसीको भजता है यानि ग्रहण करता है ।
मान लीजिये एक पहाड़ है । उसमें लोहे, ताँबे, शीशे और सोने कि चार खान है । किसी ठेकेदार ने परिमित समय के लिये उन खानों को ठेके पर ले लिया और वह उससे माल
निकालना चाहता है । तथा चारों धातुओं में से किसी को भी निकाले, समय
करीब-करीब बराबर ही लगता है । इन चारों की कीमत को जानने वाला ठेकेदार सोनेके रहते
हुए सोने को छोड़कर क्या लोहा, ताँबा, शीशा निकालने के लिये क्या अपना समय लगा सकता
है ? कभी नहीं । सर्वप्रकार से वह तो केवल सुवर्ण ही निकालेगा । वैसे ही माया और परमेश्वर के तत्त्व जानने वाला परमेश्वर को छोड़कर नाशवान्
क्षणभंगुर भोग और अर्थ के लिये अपने अमूल्य समय को कभी नहीं लगा सकता । वह सब प्रकार से निरंतर परमात्मा को भी भजेगा । गीता में भी कहा है------
यो मामेवमसंमूढो जानाति
पुरुषोत्तमम् ।
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत ।। (गीता १५।१९)
अर्थात `हे अर्जुन ! इस प्रकार
तत्त्व से जो ज्ञानी पुरुष मुझको पुरुषोत्तम जानता है वह सर्वज्ञ पुरुष सब प्रकार
से निरन्तर मुझ वासुदेव परमेश्वर को ही भजता है ।`
इस प्रकार ईश्वर की अनन्य भक्ति करने से मनुष्य परमेश्वरको
प्राप्त हो जाता है । इसलिये श्रद्धापूर्वक निष्काम प्रेमभाव से नित्य
निरन्तर परमेश्वर भजन,ध्यान करने के लिये प्राणपर्यन्त प्रयत्नशील रहना चाहिये ।
नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण
!
[ पुस्तक 'तत्व-चिन्तामणि` श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड ६८३, गीता प्रेस,गोरखपुर ]
[ पुस्तक 'तत्व-चिन्तामणि` श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड ६८३, गीता प्रेस,गोरखपुर ]