※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 24 अक्तूबर 2012

शक्तिका रहस्य


अब आगे........

`सर्व खल्विदं ब्रह्म`     (छान्दोग्य०३१४१)
`वासुदेव सर्वामिति`           (गीता ७१९ )
`सदसच्चाहमर्जुन`               (गीता  १९)

 तथा माया ईश्वर कि शक्ति है और शक्तिमान् से शक्ति अभिन्न होती है जैसे अग्नि की दाहिका शक्ति अग्नि से अभिन्न है, इसलिये परमात्मा से इसे भिन्न भी नहीं कह सकते

  चाहे जैसे तो तत्त्व को समझकर उस परमात्मा कि उपासना करनी चाहिये तत्त्व को समझकर की हुई उपासना ही सर्वोत्तम है जो उस परमेश्वर तत्त्व से समझ जाता है, वह उसको एक क्षण भी नहीं भूल सकता, सब कुछ परमात्मा ही है इस प्रकार समझनेवाला परमात्मा को कैसे भूल सकता है ? अथवा जो परमात्मा को सारे संसार से  उत्तम समझता है वह भी परमात्मा को छोड़कर दूसरी वस्तु को कैसे भज सकता है ? यदि भजता है तो परमात्माके तत्त्व को नहीं जानता है क्योंकि यह नियम है कि मनुष्य जिसको उत्तम समझता है उसीको भजता है यानि ग्रहण करता है

मान लीजिये एक पहाड़ है उसमें लोहे, ताँबे, शीशे और सोने कि चार खान है किसी ठेकेदार ने परिमित समय के लिये उन खानों को ठेके पर ले लिया और वह उससे माल निकालना चाहता है तथा चारों धातुओं में से किसी को भी निकाले, समय करीब-करीब बराबर ही लगता है इन चारों की कीमत को जानने वाला ठेकेदार सोनेके रहते हुए सोने को छोड़कर क्या लोहा, ताँबा, शीशा निकालने के लिये क्या अपना समय लगा सकता है ? कभी नहीं सर्वप्रकार से वह तो केवल सुवर्ण ही निकालेगा वैसे ही माया और परमेश्वर के तत्त्व जानने वाला परमेश्वर को छोड़कर नाशवान् क्षणभंगुर भोग और अर्थ के लिये अपने अमूल्य समय को कभी नहीं लगा सकता वह सब प्रकार से निरंतर परमात्मा को भी भजेगा गीता में भी कहा है------

यो मामेवमसंमूढो जानाति पुरुषोत्तमम्
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन  भारत ।। (गीता १५१९)

   अर्थात `हे अर्जुन ! इस प्रकार तत्त्व से जो ज्ञानी पुरुष मुझको पुरुषोत्तम जानता है वह सर्वज्ञ पुरुष सब प्रकार से निरन्तर मुझ वासुदेव परमेश्वर को ही भजता है `
     इस प्रकार ईश्वर की अनन्य भक्ति करने से मनुष्य परमेश्वरको प्राप्त हो जाता है इसलिये श्रद्धापूर्वक निष्काम प्रेमभाव से नित्य निरन्तर परमेश्वर भजन,ध्यान करने के लिये प्राणपर्यन्त प्रयत्नशील रहना चाहिये

नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !
[ पुस्तक 'तत्व-चिन्तामणि` श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड ६८३, गीता प्रेस,गोरखपुर ]