प्रह्लादको कितना कष्ट दिया गया, उनकी माँग एक ही थी भगवान् की भक्ति ! पिता कहता है कि
इसको छोड़ दो, परन्तु उन्होंने नहीं छोड़ा ! हमारी एक ही माँग
होनी चाहीये भगवान् के दर्शन की, प्रहलाद की तरह हठ होना
चाहीये- इसीका का नाम सत्याग्रह है !दुनिया में जो लोग सत्याग्रह करते हैं वह तो
दुराग्रह है ! सत् परमात्मा है, उसके लिये आग्रह ही सत्याग्रह
है ! सच्चे स्वराज्य के लिये परिश्रम करना चाहीये, सच्चा
स्वराज्य मिले तो झूठा स्वराज्य इसके अंतर्गत है ! बड़े बड़े चक्रवर्ती राजा उनके
चरणों में लेटा करते थे जिनके हाथ में सच्चा स्वराज्य था ! जिनको परमात्मा की
प्राप्ति हो गयी है उनके पास ही सच्चा स्वराज्य है ! जब आपको सच्चा स्वराज्य मिल
जायेगा तो बड़े बड़े राजा महाराजा आपके चरणों की धूलि की आकांक्षा करेंगे ! लोग आपके
चरणों की धूलि की आकांक्षा करें इसके लिये आपको वह प्राप्त नहीं करना है !
आपको मैले की तरह मान-बडाई, प्रतिष्ठा को फेंक देना चाहीये !
जहाँ मन-बडाई, प्रतिष्ठा मिले उस स्थान में हम नहीं जायें !
जिस प्रकार मान-बड़ाई, प्रतिष्ठा को अपना रखा है, उस तरह प्रभु को अपनाना चाहीये ! वे खड़े हैं तुम्हारी चिरोरी कर रहे हैं
कि यह स्थान दे तो मैं इसके ह्रदय में बैठूँ
! प्रभु को ह्रदय में बसाओ, यह सब नियमों का
सरदार है ! कुछ छोटे छोटे नियम बताये जाते हैं !
१ भोजन करने के समय जो कुछ प्राप्त हो जाये, मन ही मन सें उसे भगवान के समर्पण करना चाहीये ! उस समय जो
कुछ मिल गया वही प्रसाद है, फिर दुबारा नहीं लें ! नमक आदि
कम है, जो कुछ है वह प्रसाद है ! अब प्रसाद को बिगाड़ो मत,
जैसे खीर में धुल डालनी है ऐसे उस प्रसाद में नमक डालना है ! चीज भी
घर में चाहे ५० तरह कि बने एक ही लें तो उत्तम है, अन्यथा २
ले लें ! यदि ३ चीजें ले तो कामचोरी कि बात है, दूध और गंगाजल
तो खुला है ! यह बाहर का नियम है ! किन्तु इससें बड़ी रक्षा होती है ! संयम करना
चाहीये !
२ जिनके यज्ञोपवीत है बन सके तो सूर्योदय
के पूर्व तथा सूर्यास्त के पूर्व संध्या करनी चाहीये ! समय का बड़ा महत्व है !
महाभारत में जरत्कारू कि कथा है ! जरत्कारू ने कहा - मैं ठीक समय पर उपासना करता
हूँ ! जब तक मैं सूर्य कि उपासना नहीं कर लूँगा तब तक क्या सूर्य अस्ताचल को जा
सकते हैं ? नहीं जा सकते !
संध्योपासन क्या है ? ईश्वर कि उपासना है !
उसमे यदि साथ में प्रेम हो तो भगवान को उसी समय आना पड़े, किन्तु
प्रेम दुरी कि बात है ! नियम, समय और प्रेम तीन चीजें है,
नियम का मतलब नित्य करना ठीक समय पर करना. दो काम हो जाय तो पीछे
प्रेम रह जाता है ! पैंसठ पैसा काम हो गया, पैंतीस पैसा काम
बाकी रहा !
सूर्य भगवान के उदय होते समय हम प्रेम से पुष्पांजलि
के लिये खड़े हैं, उदय होते ही हमने पुष्पांजलि दे दी,
भगवान सूर्य प्रसन्न हो जाते हैं ! मरने के समय हम सूर्य भगवान सें प्रार्थना
करें - हे सूर्य देव ! मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ, मेरे
लिये वह मार्ग दीजिये जिससे अर्चिमार्ग कहते है, मैं
परमात्मा के दर्शन कि इच्छा करता हूँ, उनके दर्शन के लिये
द्वार खोल दें तो सूर्य भगवान प्रार्थना सुन लेते हैं ! यदि हमारा प्रेम हो जाय तब
तो भगवान यहीं आकार मिल जायें ! गायत्री मंत्र में और क्या बात है ?
स्तुति, ध्यान, प्रार्थना तीन चीजें है ! एक
ही जगह तीन चीज किसी मंत्र में नहीं है ! गायत्री मंत्र में स्तुति है और ध्यान है
! भगवान के तेज का वर्णन है ! उनका ध्यम करते हैं ! ध्यान करने के बाद मांग पेश
करते हैं, याचना भी बहुत उच्च कोटि कि है ! इस प्रकार समझकर
हम गायत्री का जप करें तो बेड़ा पार है ! गायत्री के अर्थ कि और ध्यान रखें या उसके
अर्थस्वरूप भगवान हैं, उनका ध्यान करें ! आप हजार गायत्री
मंत्र जप करते हैं, किन्तु इस प्रकार आप दस मंत्र का जप करें
तो दस मंत्र हजार से बढ़कर हैं ! बीस वर्ष से आप जप करते हैं भगवान नहीं मिले !
तुम्हारा मन संसार में डोलता है तो तुम भी संसार में डोलोगे ! गायत्री मंत्र आप इस
तरह जपें तो थोड़े ही समय में आपका कल्याण हो सकता है ! सन्ध्या में नियम, समय और प्रेम तीनो ही शामिल हो तो भगवान तुरंत मिलेंगे ! तीनों नहीं हो,
दो ही हो तो कभी तो मिलेंगे ही !
आप गीता पाठ करते हैं ! पाठ करते समय मुग्ध हो जाना
चाहीये और अर्थ का जो भाव है उसके रंग में रंग जाना चाहीये ! आप भगवान के किसी भी
नाम का जप करते है, नाम जप के साथ स्वरुप का ध्यान भी
करना चाहीये तथा गुण, प्रभाव कि और भी दृष्टि डालनी चाहीये !
आप एक घंटा भगवान का भजन करते हैं ! इस प्रकार करने सें २ घंटा लगे तो लगाने दो !
इस प्रकार ही करो ! आपके दस माला फेरने का या आठ माला फेरने का नियम ले रखा है,
वह चाहे कमती हो इस प्रकार करो !
नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण
नारायण........
[ पुस्तक भगवत्प्राप्ति कैसे हो ? श्रीजयदयालजी
गोयन्दका,कोड १७४७,गीता प्रेस गोरखपुर
]
संध्योपासन क्या है ? ईश्वर कि उपासना है ! उसमे यदि साथ में प्रेम हो तो भगवान को उसी समय आना पड़े, किन्तु प्रेम दुरी कि बात है ! नियम, समय और प्रेम तीन चीजें है, नियम का मतलब नित्य करना ठीक समय पर करना. दो काम हो जाय तो पीछे प्रेम रह जाता है ! पैंसठ पैसा काम हो गया, पैंतीस पैसा काम बाकी रहा !
[ पुस्तक भगवत्प्राप्ति कैसे हो ? श्रीजयदयालजी गोयन्दका,कोड १७४७,गीता प्रेस गोरखपुर ]