※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

दान का रहस्य



दान में महत्त्व है त्याग का, वस्तु के मूल्य या संख्या का नहीं | ऐसी त्याग बुद्धि से जो सुपात्र को यानी जिस वस्तु का जिसके पास अभाव है , उसे वह वस्तु देना और उसमे किसी प्रकार की कामना न रखना उत्तम दान है | निष्काम भाव से किसी भूखे को भोजन और प्यासे को जल देना सात्विक दान है | संत श्रीएकनाथजी की कथा आती है कि वे एक समय प्रयाग से काँवर पर जल लेकर श्रीरामेश्वरम् चढ़ाने के लिए जा रहे थे | रास्ते में जब एक जगह उन्होंने देखा कि एक गधा प्यास के कारण पानी के बिना तड़प रहा है , उसे देखकर उन्हें दया आ गयी और उन्होंने उसे थोड़ा-सा जल पिलाया , इससे उसे कुछ चेत-सा हुआ | फिर उन्होंने थोड़ा-थोड़ा करके सब जल उसे पीला दिया | वह गदहा उठकर चला गया | साथियों ने सोचा कि त्रिवेणी का जल व्यर्थ ही गया और यात्रा भी निष्फल हों गयी | तब एकनाथजी ने हँसकर कहा – ‘भाइयो, बार-बार सुनते हो, भगवान सब प्राणियों के अंदर हैं, फिर भी ऐसे बावलेपन की बात सोचते हो ! मेरी पूजा तो यहीं से श्रीरामेश्वरम को पहुँच गयी | श्रीशंकर जी ने मेरे जल को स्वीकार कर लिया |’