समस्त
प्राणी , पदार्थ , क्रिया और भाव का सम्बन्ध भगवान के साथ जोड़कर साधन करने से साधक
के हृदय में उत्साह, समता, प्रसन्नता, शांति और भगवान की स्मृति हर समय रह सकती है
| इससे भगवान में परम श्रद्धा-प्रेम होकर भगवान की प्राप्ति सहज ही हो सकती है | जो
कुछ भी है- सब भगवान का है और मैं भी भगवान का हूं, भगवान सबमे व्यापक हैं (गीता
१८|४६), इसलिए सबकी सेवा ही भगवान की सेवा है, मैं जो कुछ कर रहा हूं, भगवान की
प्रेरणा के अनुसार भगवान के लिए ही कर रहा हूं, भगवान ही मेरे परम प्यारे और परम
हितैषी हैं- इस प्रकार के भाव से अपने घर या दूकान के काम को अथवा किसी भी धार्मिक
संस्था के काम को अपने प्यारे भगवान का ही काम समझकर और स्वयं भगवान का ही होकर
काम करने से साधक को कभी उकताहट नहीं होती, प्रत्युत चित्त में उत्साह, प्रसन्नता
और शांति उत्तरोत्तर बढ़ती है | यदि नही बढ़ती है तो गम्भीरता पूर्वक विचार करना
चाहिए कि इसमें क्या कारण है | खोज करने पर पता लगेगा कि श्रद्धा-विश्वास की कमी
ही इसमें कारण है | इस कमी की निवृत्ति के लिए साधक को भगवान के शरण होकर उनसे
करुणापूर्वक स्तुति-प्रार्थना करनी चाहिए और भगवान के गुण, प्रभाव, तत्त्व, रहस्य
को समझना चाहिए |