अब आगे......
आढ़त, दलाली, कमीशन में भी तरह-तरह
की चोरियां की जाती है । वास्तव में आढ़तियों को चाहिये कि महाजन के साथ आढ़त
ठहरा ले उससे एक पैसा भी छिपाकर अधिक लेना हराम समझे । महाजन को विश्वास दिलाया जाता है कि आढ़त ।।।) या ।।) सैंकड़ा ली जायगी परन्तु छल कपट से जितना अधिक
चढ़ाया जाय उतना ही चढाते हैं । २) ४) ५) सैंकड़ेतक वसूल करके भी सन्तोष नहीं होता । बोरा, बारदाना, मजदूरी आदि के बहाने से महाजन से छिपाकर या मालपर अधिक दाम
रखकर दलाली या बट्टा वगैरह उसे न देकर अथवा गुप्तरूपसे अपना माल बाजार से ख़रीदा
हुआ बताकर तरह-तरह से महाजन को ठगना चाहते हैं ।
कमीशन के काम में भी बड़ी चोरियां होती है । बाजार मंदा हो गया तो तेजभावमें बिके हुए माल की बिक्री मंदे की दे देते हैं । तेज हो गया तो किसी दुसरे से मिलकर बिना बिके ही बहुत-सा माल खुद खरीदकर
पहलेका बिका बताकर झूठी बिक्री भेज देते हैं । बंधे भाव से कम-ज्यादा भावमें भी माल बेचते हैं ।
दलाली के काम में अपने थोड़े से लोभ के लिये
ग्राहक का गला कटा दिया जाता है । दलाल का यह कर्तव्य है कि वह जिससे जिसको माल
दिलवावे उन दोनों का समान हित सोचे । अपने लोभ के लिये दोनोंको उलटी-सीधी पट्टी पढ़ाकर
लेनेवाले को तेजी और बेचनेवालेको झूठ ही मंदी कि रुख बताकर काम करवा देना बड़ा
अन्याय है । अपनी जो सच्ची राय हो वही देनी चाहिये । दोनों पक्षों को अपनी स्पष्ट धारणा और बाजार कि स्थिति सच्ची समझानी चाहिये ।
कहाँ तक गिनाया जाय । व्यापार के नाम पर चोरी, डकैती, और ठगी सब कुछ होती है । न ईश्वर पर विश्वास है न प्रारब्ध पर न ही सत्य और न्याय पर । वास्तव मे व्यापार में कुशलता भी नहीं है । कुशल व्यापारी सच्चा होता है वह दुसरोंको धोखा देनेवाला नहीं होता । सच्चाई से व्यापार कर वह सबका विश्वासपात्र बन जाता है, जितना विश्वास बढ़ता
है उतना ही उसका झंझट कम होता है और व्यापार में दिनोंदिन उन्नति होती है । मोल-मुलाई करनेवाले दुकानदार को ग्राहकों से बड़ी माथापच्ची करनी पड़ती है । विश्वास जम जानेपर सच्चे एक दाम बतानेवाले दुकानदार को माल बेचने में कुछ भी
कठिनाई नहीं होती , ग्राहक चाहकर बिना दाम पूछे उसका माल खरीदते हैं, उन्हें वहाँ
ठगे जाने का भय नहीं रहता । परन्तु आजकल तो दूकान खोलने के समय प्रतिदिन लोग
प्राय: भगवान् से प्रार्थना किया करते हैं---`शंकर ! भेज कोई हिये का अंधा और गठरी का पूरा` यानी
भगवान् ऐसा ग्राहक भेजें जिसे हम ठग सकें, जो अपनी मुर्खता से अपने गलेपर हमसे
चुपचाप छुरी फिरवा ले । इससे यह सिद्ध होता है कि कोई ग्राहक अपनी
बुद्धिमानी और सावधानी से तो भले ही बच जाय, परन्तु दुकानदार तो उसपर हाथ साफ
करनेको सब तरह सजा-सजाया तैयार है । शेष अगले ब्लॉग में....
[ पुस्तक तत्त्व-चिन्तामणि श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड ६८३, गीता प्रेस,गोरखपुर ]