※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

व्यापारसुधारकी आवश्यकता


अब आगे......

     आढ़त, दलाली, कमीशन में भी तरह-तरह की चोरियां की जाती है वास्तव में आढ़तियों को चाहिये कि महाजन के साथ आढ़त ठहरा ले उससे एक पैसा भी छिपाकर अधिक लेना हराम समझे महाजन को विश्वास दिलाया जाता है कि आढ़त ।।।) या ।।) सैंकड़ा ली जायगी परन्तु छल कपट से जितना अधिक चढ़ाया जाय उतना ही चढाते हैं २) ४) ५) सैंकड़ेतक वसूल करके भी सन्तोष नहीं होता बोरा, बारदाना, मजदूरी आदि के बहाने से महाजन से छिपाकर या मालपर अधिक दाम रखकर दलाली या बट्टा वगैरह उसे न देकर अथवा गुप्तरूपसे अपना माल बाजार से ख़रीदा हुआ बताकर तरह-तरह से महाजन को ठगना चाहते हैं
  कमीशन के काम में भी बड़ी चोरियां होती है बाजार मंदा हो गया तो तेजभावमें बिके हुए माल की बिक्री मंदे की दे देते हैं तेज हो गया तो किसी दुसरे से मिलकर बिना बिके ही बहुत-सा माल खुद खरीदकर पहलेका बिका बताकर झूठी बिक्री भेज देते हैं बंधे भाव से कम-ज्यादा भावमें भी माल बेचते हैं
   दलाली के काम में अपने थोड़े से लोभ के लिये ग्राहक का गला कटा दिया जाता है । दलाल का यह कर्तव्य है कि वह जिससे जिसको माल दिलवावे उन दोनों का समान हित सोचे अपने लोभ के लिये दोनोंको उलटी-सीधी पट्टी पढ़ाकर लेनेवाले को तेजी और बेचनेवालेको झूठ ही मंदी कि रुख बताकर काम करवा देना बड़ा अन्याय है अपनी जो सच्ची राय हो वही देनी चाहिये दोनों पक्षों को अपनी स्पष्ट धारणा और बाजार कि स्थिति सच्ची समझानी चाहिये
   कहाँ तक गिनाया जाय व्यापार के नाम पर चोरी, डकैती, और ठगी सब कुछ होती है न ईश्वर पर विश्वास है न प्रारब्ध पर न ही सत्य और न्याय पर वास्तव मे व्यापार में कुशलता भी नहीं है कुशल व्यापारी सच्चा होता है वह दुसरोंको धोखा देनेवाला नहीं होता सच्चाई से व्यापार कर वह सबका विश्वासपात्र बन जाता है, जितना विश्वास बढ़ता है उतना ही उसका झंझट कम होता है और व्यापार में दिनोंदिन उन्नति होती है मोल-मुलाई करनेवाले दुकानदार को ग्राहकों से बड़ी माथापच्ची करनी पड़ती है विश्वास जम जानेपर सच्चे एक दाम बतानेवाले दुकानदार को माल बेचने में कुछ भी कठिनाई नहीं होती , ग्राहक चाहकर बिना दाम पूछे उसका माल खरीदते हैं, उन्हें वहाँ ठगे जाने का भय नहीं रहता परन्तु आजकल तो दूकान खोलने के समय प्रतिदिन लोग प्राय: भगवान् से प्रार्थना किया करते हैं---`शंकर !  भेज कोई हिये का अंधा और गठरी का पूरा` यानी भगवान् ऐसा ग्राहक भेजें जिसे हम ठग सकें, जो अपनी मुर्खता से अपने गलेपर हमसे चुपचाप छुरी फिरवा ले इससे यह सिद्ध होता है कि कोई ग्राहक अपनी बुद्धिमानी और सावधानी से तो भले ही बच जाय, परन्तु दुकानदार तो उसपर हाथ साफ करनेको सब तरह सजा-सजाया तैयार है । शेष अगले ब्लॉग में....
नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !
[ पुस्तक तत्त्व-चिन्तामणि श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड ६८३, गीता प्रेस,गोरखपुर ]