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चमड़े के लिये भारतवर्ष में कितनी गौ-हत्या होती
है यहाँ बतलाना नहीं होगा । अतएव लाख, रेशम और चमड़े का व्यापार और व्यवहार
प्रत्येक धर्मप्रेमी सज्जन को त्याग देना चाहिये ।
कुछ लोग केवल ब्याज का पेशा करते
हैं ।यद्यपि ब्याज का पेशा निषिद्ध नहीं है परन्तु व्यापार के साथ रूपये का ब्याज
उपजाना उत्तम है । ब्याज के साथ व्यापार करने वाला कभी अकर्मण्य नहीं
होता, आलसी और नितान्त कृपण भी नहीं होता । उसमें व्यापार कुशलता आती
है । लडके-बच्चे काम सीखते हैं । कर्मण्यता बढाती है । अतएव केवल ब्याज का ही पेशा नहीं करना चाहिये परन्तु यदि कोई ऐसा नहीं कर सके
तो लोभवश गरीबों को लूटना तो अवश्य छोड़ दे । ब्याज के पेशेवाले गरीबों
पर बड़ा अत्याचार किया करते हैं । कम रूपये देकर ज्यादा का दस्तावेज लिखवाते हैं । जरा-जरा-सी बातपर उनको तंग करते हैं । ब्याज पर रुपया लेनेवाले
लोगों की सारी कमाई ब्याज भरते-भरते पूरी हो जाती है । कमाई ही नहीं, स्त्रियों का जेवर, पशु, धन, जमीन, घर-द्वार, सब उस ब्याज में
चले जाते हैं । ब्याज के पेशेवाले निर्दयता से उनके जमीन-मकान को
नीलाम करवाकर गरीब स्त्री-बच्चों को राह का कंगाल निराधार बना देते हैं । लोभसे यह सारे पाप होते हैं । इन पापों की अधिक वृद्धि प्राय: केवल ब्याज का पेशा
करने वालों के अत्यधिक लोभसे होती है । अतएव ब्याज कमानेवालों को कम-से-कम लोभ से अन्याय तो
नहीं करना चाहिये ।
यथासाध्य विदेशी वस्त्र और अन्यान्य विदेशी
वस्तुओं के व्यापार का त्याग करना चाहिये ।
सबसे पहली और अन्तिम बात यह है कि झूठ, कपट,
छलका त्यागकर, दूसरेको किसी प्रकार का नुकसान न पहुँचाकर न्याय और सत्यता के साथ व्यापार करना चाहिये । यह तो व्यापार-शुद्धि की बात संक्षेप से कही गयी । इतना तो अवश्य ही करना चाहिये । परन्तु यदि वर्णधर्म मानकर निष्कामभाव से व्यापार के
द्वारा परमात्मा की पूजा की जाय तो इसीसे परमपद की प्राप्ति भी हो सकती है ।
नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण
!
[ पुस्तक 'तत्व-चिन्तामणि` श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड ६८३, गीता प्रेस,गोरखपुर ]
[ पुस्तक 'तत्व-चिन्तामणि` श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड ६८३, गीता प्रेस,गोरखपुर ]