※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

व्यापारसे मुक्ति

हरि भक्त गोरा कुंभार
असत्य, कपट और लोभ आदि त्याग करके यदि भगवत्-प्रीत्यर्थ न्याययुक्त व्यापार किया जाय तो वही मुक्ति का मुख्य साधन बन सकता है मुक्तिमें प्रधान हेतु भाव है, क्रिया नहीं है शास्त्रविधि के अनुसार सकाम भाव से यज्ञ, दान, ताप आदि उत्तम कर्म करनेवाला मुक्ति नहीं पाता, सकाम बुद्धि के कारण वह तो या तो उस अभीष्ट सिद्धि को प्राप्त होता है जिसके लिये वह उक्त सत्कार्य करता है या निश्चित काल के लिये स्वर्ग को प्राप्त करता है परन्तु निष्काम भावसे किया अल्प कर्म भी मुक्ति का हेतु बन सकता है इसीलिये सकाम कर्म को तुच्छ और अल्प कहा है, कुछ भी न करने वाले कि अपेक्षा सकाम यज्ञादि कर्म करने वाले बहुत ही उत्तम है और इन लोगों को प्रोत्साहन ही मिलना चाहिये, परन्तु सकाम भाव रहने तक वह कर्म स्त्री, धन, मान-बडाई या स्वर्गादिके अतिरिक्त परमपद कि प्राप्ति करने में समर्थ नहीं होता इसीसे गीता में भगवान् ने सकाम कर्म को निष्काम की अपेक्षा नीचा बताया है (देखो गीता अ० २४२,४३,४४; अ० ७२०,२१,२२; अ०९२०,२१) पक्षान्तरमें निष्काम कर्मकी प्रशंसा करते हुए भगवान् कहते है-----

नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति  प्रत्यवायो न विद्यते
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ।। ( गीता २४०)

`इस निष्काम कर्म योग में आरम्भ का अर्थात बीजका नाश नहीं है और विपरीत फलरूप दोष भी नहीं होता है इसलिये इस निष्काम कर्मयोग रूप धर्मका थोड़ा भी साधन जन्म-मृत्युरूप महान्  भयसे उद्धार कर देता है ` अतएव मुक्तिकामियों को निष्काम कर्म का आचरण करना चाहिये मुक्ति के लिये आवश्यकता ज्ञानकी है, किसी अन्य बाह्य  उपकरण की नहीं, इसीसे मुक्तिका अधिकार साधनसम्पन्न होनेपर सभी को है व्यापारी भाइयों को व्यापार छोड़ने की आवश्यकता नहीं वे यदि चाहे तो व्यापारको ही मुक्ति का साधन बना सकते हैं ।शेष गले ब्लॉग में......

नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !
[ पुस्तक 'तत्व-चिन्तामणि` श्रीजयदयालजी गोयन्दका कोड ६८३, गीता प्रेस,गोरखपुर ]