क्रमश :
खान-पान की पवित्रता और
सयंम-आर्य जाति के लोगो के जीवन का प्रधान अंग है | आज इस पर बहुत ही कम ध्यान दिया जाता है | रेलों में
देखिये–हर किसी का
जूठा सोडावाटर, लेमन पीना
और जूठा भोजन खाना आमतौर पर चलता है | इसमें अपवित्रता तो है ही, एक दुसरे की बीमारी के और गंदे विचारो के परमाणु
एक-दुसरे-के अंदर प्रवेश कर जाते है | होटल,हलवाई की दूकान या चाट वाले के खोमचे के सामने जुते पहने
खड़े-खड़े खाना, हर किसी के
हाथ से खा लेना, मांस-मध्
का आहार करना,लहसुन-प्याज, अन्डो से
युक्त बिस्कुट, बाजारू चाय, तरह-तरह के
पानी, अपवित्र
आइसक्रीम, और बरफ आदि
चीजे खाने-पिने में आज बहुत ही कम हिचक रह गयी है | शोक की बात है की निरामिषभोजी जातिओ में भी डाक्टरी दवाओ
के द्वारा और होटलों तथा पार्टियो के संसर्ग दोष से अंडे और मॉस-मध् का प्रचार हो
रहा है | मॉस में
प्रत्यक्ष हिंसा होती है | मांसाहारीयो की बुद्धि तामसी हो जाती है और स्वाभाव क्रूर
बन जाता है | नाना
प्रकार के रोग तो होते ही है |
इसी प्रकार आजकल बाजार
की मिठाईयो में भी बड़ा अनर्थ होने लगा है | असली घी मिलना तो मुश्किल है ही | वेजिटेबल
नकली घी भी असली नहीं मिलता, उसमे भी मिलावट होनी शुरू हो गयी है | मावा, बेसन, मैदा, चीनी, आटा, मसाले, तेल आदि
चीजे भी शुद्ध नहीं मिलती| हलवाई लोग तो दो पैसे के लोभ से नकली चीजे बरतते ही है | समाज के
स्वास्थ्य का ध्यान न दुकानदारों को है,न हलवाईयो को | होता भी कैसे ? जब बुरा बतलाने वाली ही बुरी चीजो का लोभवश प्रसार करते
है, तब बुरी
बातो से कोई कैसे परहेज रख सकता है ? आज तो लोग आप ही अपनी हानि करने को तैयार है | यही तो मोह
की महिमा है |
अन्याय से कमाये हुए
पैसो का, अपवित्र
तामसी वस्तुओ से बना हुआ, अपवित्र हाथो से बनाया हुआ, हिंसा और मादकताओ से युक्त, विशेष खर्चीला, अस्वास्थ्यकर पदार्थो से युक्त,सडा हुआ, व्यसनरूप, अपवित्र और उच्चिस्ट भोजन धर्म, बुद्धि, धन, हिन्दू-सभ्यता और स्वास्थ्य सभी के लिये हानिकर होता है | इस विषय पर
सबको सोचना चाहिए | शेष अगले ब्लॉग में.......
नारायण – नारायण – नारायण – नारायण –नारायण