॥ श्री हरि: ॥
गुजरात और महाराष्ट्र
में विवाह के अवसर पर हरी-कीर्तन की बड़ी सुन्दर प्रथा है । हरिकीर्तन में एक
कीर्तनकार होते है, जो किसी भक्त चरित्र को गा-गा कर सुनाते है – बीच-बीच
में नामकीर्तन भी होता रहता है । सुन्दर मधुर स्वर के वाद्यों के सहयोग होने से
कीर्तन सभी के लिए रुचिकर और मनोरंजक भी होता है और उससे बहुत अच्छी शिक्षा भी
मिलती है । उत्तर और
पश्चिम भारत के धनी लोग उपयुक्त कुप्रथाओ को छोड़ कर इस प्रथा को अपनावे तो बड़ा
अच्छा है ।
लड़कियों के विवाह भी
आजकल बहुत बड़ी उम्र में होने लगे है । बाल-विवाह से बड़ी हानि हुई है, परन्तु
लड़की को युवती बना कर विवाह करना बहुत हानिकर है । शास्त्रीय मर्यादा के अनुसार
रजोदर्शन होने के बाद विवाह करना अधर्म तो है ही, आजकल के बिगड़े हुए समाज में तब तक चरित्र का पवित्र रहना
भी असंभव-सा ही है । युवती-विवाह के कारण कुमारी अवस्था में आजकल व्यभिचार की
मात्र जिस तीव्र गति से बढ़ रही है, उसे देखते भविष्य बहुत ही भयानक मालूम होता है । यही हाल
स्कूली लड़कों का है । अतैव लड़की का विवाह रजोदर्शन से पूर्व और लड़के का अठारह वर्ष की
आयु में कर देना उचित जान पड़ता है । अवश्य ही स्त्री-पुरुष का संयोग तो स्त्री के
रजोदर्शन के बाद ही होना चाहिये । नहीं तो धर्म की हानि के अतिरिक्त हिस्टीरिया, क्षय
(तपेदिक) और प्रदर आदि की भयंकर बीमारियाँ होकर उनका जीवन नष्ट प्राय हो जाता है।
घर में किसी की मृत्यु
हो जाने पर श्राद्धभोज और बंधुभोज की प्राचीन प्रथा है । यह वास्तव में कोई दूषित
प्रथा नहीं है, परन्तु
निर्दोष प्रथा भी जब देश, काल और पात्र के अनुकूल नहीं होती तो वह दूषित हो जाती
है । जिस समय खाद्य पदार्थ बहुत सस्ते थे और गृहस्थ के दूसरे खर्च कम थे, उस समय की
बात दूसरी थी । अब तो बहुधा यह देखा जाता है कि इस प्रथा की रक्षा के लिए
ब्राह्मण-भोजन और बन्धुभोजन में साधारण मध्यवित गृहस्थो के स्त्री-धन और घर-मकान
और जगह-जमीन तक बिक जाते है ।परिणाम यह होता है कि पुरे परिवार सभी लोगो के जीवन
दुःख:पूर्ण हो जाते है । इस प्रथा में शास्त्रोक्त ब्राह्मण-भोजन तो अवश्य करना चाहिये, परन्तु
कुटुम्बियों को छोड़ कर बंधू-भोजन की कोई आवश्यकता नहीं है ।
विवाह और औसर आदि पर पूरे
देश-से कुटुम्बियों का जो आना है इसकी भी कमी करनी चाहिए; क्योंकि इसमें भी विशेष धन व्यय होता है तथा लोगो को
आने-जाने में हैरानी भी बहुत आती है ।
बड़े शहरो में बड़े
आदमियों के यहाँ विवाहों में आजकल बिजली का खर्च,मेहमानदारी का खर्च और उपरी आड़म्बर का खर्च इतना बढ़ गया
है कि गरीब गृहस्थो के यहाँ उतने खर्च में कई विवाह हो सकते हैं । मान-सम्मान, कीर्ति और
पोजीशन का मिथ्या मोह,मूढ़ता और हठधर्मी ही इन सारे रस्म-रिवाजों के चलते रहने में प्रधान कारण है । अत एव इन
सबको छोड़ कर साहस के साथ ऐसे रस्मो का त्याग कर देना चाहिये ।
नारायण – नारायण – नारायण – नारायण –नारायण
शेष
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जयदयाल
गोयन्दका, तत्व-चिंतामणि, कोड ६८३, गीताप्रेस गोरखपुर