※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 1 दिसंबर 2012

समाज के कुछ त्याग करने योग्य दोष

|| श्री हरी: ||
समाज के कुछ त्याग करने योग्य दोष
 
(६) - कुविचारो का प्रचार
क्रमश:
ईश्वर नहीं है, ईश्वर को मानना ढोंग है, ईश्वर भक्ति मुर्खता है, शास्त्र और पुराणो के रचयिता दंभ है और पाखण्ड के प्रचारक थे, मुक्ति या भगवत्प्राप्ति केवल कल्पना है,खान-पान में छूआछूत और किसी नियम की आवश्यकता नहीं, वर्ण भेद जन्म और कर्म से नहीं, केवल कर्म से है,शास्त्र न मानने में कोई हानि नहीं है, पूर्व पुरुष आज के सामान उन्नत नहीं थे, जगत की क्रमश: उन्नति हो रही है, अवतार उन्नत विचार के महात्माओ का ही नामांतर है, माता-पिता की आज्ञा मानना आवश्यक नहीं है, स्त्री को पति के त्याग का और नवीन पति-निर्वाचन का अधिकार होना चाहिये, स्त्री-पुरुषो का सभी क्षेत्रो में समान कार्य होना चाहिए, परलोक-पुनर्जन्म किसने देखे हैं,पाप-पुण्य और नरक-स्वर्गादी केवल कल्पना है,ऋषि-मुनिगण स्वार्थी थे, ब्राह्मणों ने स्वार्थसाधन के निमित ही ग्रंथो की रचना की, पुरुषजाती ने स्त्रियों को पददलित बनाये रखने के लिये ही पतिव्रत और सतीत्व की महिमा गई है, देवतावाद कल्पना है,उच्च वर्णों ने नीच वर्णों के साथ सदा अत्याचार ही किया है, विवाहके पूर्व लड़के-लड़कियो का अशलील रहन-सहन व्याभिचार नहीं है, सबको अपने-अपने मन के अनुसार सब कुछ करने का अधिकार है आदि ऐसी-ऐसी बातें आजकल इस ढंग से फैलायी जा रही है की भोले-भोले नर-नारी ईश्वर में अविश्वासी होकर धर्म, कर्म और सदाचार का त्याग कर रहे है | इसी और सभी विचार शील पुरुषो को ध्यान देना चाहिये |
                                    (७) बहम और मिथ्या विश्वास
इसी के साथ-साथ यह भी सत्य है की समाज में अभीतक नाना प्रकार के मिथ्या विश्वास और बहम फैले हुए है | भूत-प्रेत-योनी हैं, परन्तु वहमी नर-नारी तो बात-बात में भूत-प्रेत की आशंका करते है हिस्टीरिया की बीमारी हुई तो प्रेत-बाधा, मृगी या उन्माद हो गया तो प्रेत का संन्देह और न मालूम कहाँ-कहाँ बहम भरे है, इसलिये ठग और धूर्तलोग झाड़-फूँक, टोना, जादू, जंत्र और तंत्र-मन्त्र के नाम पर नाना प्रकार के लोगो को ठगते है | पीर पूजा, कब्र पूजा,ताजियों के नीचे से बच्चो को निकालना, गाजीमियाँ की मनौती आदि पाखंड इसी बहम के आधार पर चल रहे है | इन मिथ्या विश्वास को हटाने के लिए भी समाज के समझदार लोगो को प्रयत्न करना चाहिये |

 

नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण ! नारायण !
जयदयाल गोयन्दका, तत्व चिंतामणि, कोड ६८३, गीताप्रेस गोरखपुर