|| श्री हरी: ||
(८) व्यवहार-बर्ताव
क्रमश:
प्राय: मालिक लोग नेक नौकरों और मजदूरों के साथ भी अच्छा व्यवहार नहीं करते | उन्हें पेट भरने लायक वेतन नहीं देते, बात-बात पर अपमान और तिरस्कार करते है | नौकर और मजदूर भले मालिको को भी कोसते हैं और उनका बुरा चाहते हैं | भाई अपने भाई के साथ दुर्व्यव्हार करते हैं | पिता अपने पुत्र के साथ अच्छा बर्ताव नहीं करता | पुत्र माता-पिता का अपमान करता है | सास अपनी पुत्रवधू को गाली बकती है तो अधिकारारारुढ पुत्रवधू अपनी सास को कष्ट पहुचाती है | ननद-भौजाई में कलह रहती है | माता अपनी ही संतान – पुत्र और कन्या के साथ भेदयुक्त बर्ताव करती है | जमींदार किसान को लूट लेना चाहता है, किसान जमींदारो को बुरा ताकते है | राजा अपनी प्रजा का मान,धन और अधिकार छीनने पर उतारू हैं तो प्रजा राजा का सर्वस्वांत देखना चाहती है | ब्राह्मण शूद्रों का अपमान करते हैं तो शुद्र ब्राह्मणों को कोसते हैं| पडोसी-पडोसी में भी दुर्व्यवहार और कलह है | जगत में इस दुर्व्यवहार और कलह के कारण दुःख का प्रवाह बह चला है | प्राय: सभी एक दुसरे से शंकित और भीत है | यह दशा बड़ी ही भयावनी है | इस पर भी विचार करके इसका सुधार करना चाहिये |
नारायण – नारायण – नारायण – नारायण –नारायण
शेष अगले ब्लॉग में.......
नारायण – नारायण – नारायण – नारायण –नारायण