※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 2 दिसंबर 2012

समाज के कुछ त्याग करने योग्य दोष


|| श्री हरी:  ||


 समाज के कुछ त्याग करने योग्य दोष

(८)  व्यवहार-बर्ताव




क्रमश:


प्राय: मालिक लोग नेक नौकरों और मजदूरों के साथ भी अच्छा व्यवहार नहीं करते | उन्हें पेट भरने लायक वेतन नहीं देते, बात-बात पर अपमान और तिरस्कार करते है | नौकर और मजदूर भले मालिको को भी कोसते हैं और उनका बुरा चाहते हैं | भाई अपने भाई के साथ दुर्व्यव्हार करते हैं | पिता अपने पुत्र के साथ अच्छा बर्ताव नहीं करता | पुत्र माता-पिता का अपमान करता है | सास अपनी पुत्रवधू को गाली बकती है तो अधिकारारारुढ पुत्रवधू अपनी सास को कष्ट पहुचाती है | ननद-भौजाई में कलह रहती है | माता अपनी ही संतान पुत्र और कन्या के साथ भेदयुक्त बर्ताव  करती है | जमींदार किसान को लूट लेना चाहता है, किसान जमींदारो को बुरा ताकते है | राजा अपनी प्रजा का मान,धन और अधिकार छीनने पर उतारू हैं तो प्रजा राजा का सर्वस्वांत देखना चाहती है | ब्राह्मण शूद्रों का अपमान करते हैं तो शुद्र ब्राह्मणों को कोसते हैं| पडोसी-पडोसी में भी दुर्व्यवहार और कलह है | जगत में इस दुर्व्यवहार और कलह के कारण दुःख का प्रवाह बह चला है | प्राय: सभी एक दुसरे  से  शंकित और भीत है | यह दशा बड़ी ही भयावनी है | इस पर भी विचार करके इसका सुधार करना चाहिये | 
शेष अगले ब्लॉग में.......

नारायण नारायण नारायण नारायण नारायण
जयदयाल गोयन्दका, तत्व-चिंतामणि, कोड ६८३, गीताप्रेस गोरखपुर