※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 10 दिसंबर 2012

* गीता पढ़ने के लाभ *


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    गीता एक उच्चकोटि का दर्शनशास्त्र है | यह सिद्धान्त-रत्नों का सागर है | इसके अध्ययन से नित्य नए उच्चकोटि के भाव-रत्न प्राप्त होते रहते है | गीता का श्रद्धा-प्रेमपूर्वक गायन करने से इतना रस आता है कि उसके सामने सारे रस फीके हैं |
     
   गीता मनुष्य को नीचे-से-नीचे स्थान से उठाकर ऊँचे-से-ऊँचे परमपद पर आरूढ़ करानेवाला एक अद्भुत प्रभावशाली ग्रन्थ है | मनुष्य जब कभी किसी चिंता, संशय और शोक में मग्न हो जाता है और उसे कोई रास्ता दिखायी नहीं पड़ता, उस समय गीता के श्लोकोंके अर्थ और भावपर लक्ष्य करने से वह निश्चिन्त, नि:संशय और शोकरहित होकर प्रसन्नता और शान्ति को प्राप्त हो जाता है |
     
   गीता में बहुत से ऐसे श्लोक हैं, जिनमें से एक श्लोक का या उसके एक चरण का भी यदि मनुष्य अर्थ और भाव समझकर अध्ययन करे और उसके अनुसार अपना जीवन बना ले तो उसका निश्चय ही उद्धार हो सकता है | गीता में मनुष्यमात्र का अधिकार है | भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है-

ये मे मतमिदं नित्यमनुतिष्ठन्ति मानवा: |
श्रद्धावन्तोऽनसूयन्तो मुच्यन्ते तेऽपि कर्मभि: || ( गीता ३/३१ )

‘जो कोई मनुष्य दोषदृष्टि से रहित और श्रद्धायुक्त होकर मेरे इस सिद्धान्त का अनुशरण करते हैं, वे भी सम्पूर्ण कर्मों से छूट जाते हैं |’
      
   यहाँ भगवान ने ‘मानवा:’ कहकर यह स्पष्ट व्यक्त कर दिया है कि यह एक जातिविशेष या व्यक्तिविशेष के लिए ही नहीं है, इसमें मनुष्यमात्र का अधिकार है | प्रत्येक वर्ण,आश्रम ,जाति , धर्म और समाज का मनुष्य इसका अध्ययन करके अपना कल्याण कर सकता है |
  
   आध्यात्मिक दृष्टि से सारी मानवजाति पर ही गीता का बहुत प्रभाव पड़ा है | भगवान श्रीकृष्ण का हिंदूजाति में अवतार हुआ था, इसलिए लोग गीता को प्राय: हिन्दुओं का ही धर्मग्रन्थ समझते हैं, पर वास्तव में यह केवल हिन्दुओं के ही लिए नहीं है; ईसाई, मुसलमान आदि सभी धर्मावलम्बियों के लिए और धर्म को न माननेवालोंके लिए भी समानरूपसे कल्याण का मार्ग दिखानेवाला प्रकाशमय सूर्य है | केवल भारतवासियों के लिए ही नहीं, सम्पूर्ण पृथ्वी पर निवास करनेवाले सभी मनुष्यों के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने इस गीता का उपदेश किया है | मनुष्यों की तो बात ही क्या है, देवता, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस आदि जितने भी बुद्धियुक्त प्राणी हैं, उन सभी के लिए यह कल्याणमय भण्डार है |
   
   कोई-कोई ऐसा कहते हैं कि गीता तो केवल संन्यासियो के लिए है, किन्तु ऐसा समझना गलत है, क्योंकि अर्जुन ने कहा था कि गुरुजनों को न मारकर मैं भिक्षा का अन्न खाना कल्याणकारक समझता हूँ (गीता २/५ ), किन्तु भीख माँगकर खाना क्षत्रिय का धर्म नहीं, संन्यासी का धर्म है | इससे सिद्ध हुआ कि अर्जुन गृहस्थाश्रम को छोड़कर संन्यासाश्रम ग्रहण करके भीख माँगकर खाना अच्छा समझते थे, पर भगवान ने उनकी इस समझ की निंदा की और ‘क्षत्रिय के लिए धर्मयुद्ध से बढ़कर दूसरा कोई कल्याणकारी कर्तव्य नहीं है |’ (गीता २/३१) कहकर उन्हें धर्मयुद्ध में लगाया | अर्जुन गृहस्थी थे और गीता का उपदेश सुनने के बाद भी आजीवन गृहस्थी ही रहे | इससे गीता केवल संन्यासियों के ही लिए है, यह सिद्ध नहीं होता, बल्कि यही सिद्ध होता है कि गीता संन्यासी–गृहस्थी सभी मनुष्यों के लिए है |
    
   अतः गीताशास्त्र सभी के लिए इस लोक और परलोक में कल्याण करनेवाला होनेसे यह सबके लिए सर्वोत्तम परम धर्ममय ग्रन्थ है | इसलिए सभी मनुष्यों को गीता का अर्थ और भाव समझते हुए अध्ययन करना चाहिए | गीता के अध्ययन से मनुष्य के शरीर, वाणी, मन और बुद्धि की उन्नति होती है | इस लोक में धन, जन, बल, मान और प्रतिष्ठा की प्राप्ति एवं परलोक में परम श्रेयमय परमात्मा की प्राप्ति होती है | ....शेष अगले ब्लॉग में 

जयदयाल गोयन्दका ‘गीता पढ़ने के लाभ’ पुस्तक से, कोड नं०३०४