गीता आनंद-सुधा का सीमारहित छलकता हुआ समुद्र
है | इसमें भावों और अर्थों की इतनी गम्भीरता और व्यापकता है कि मनुष्य जितनी ही
बार इसमें डुबकी लगाता है , उतनी ही बार वह नित्य नवीन आनन्द को प्राप्तकर मुदित
और मुग्ध होता है | रत्नाकर सागर में डुबकी लगाने वाला चाहे रत्नों से वंचित रह
जाय, पर इस दिव्य रसामृत-समुद्र में डुबकी लगाने वाला कभी खाली हाथ नहीं निकलता |
इसकी सरस और सार्थ-सुधा इतनी स्वादु है कि उसके ग्रहण से नित्य नया स्वाद मिलता
रहता है | रसिकशेखर श्यामसुन्दर की इस रसीली वाणी में इतनी मोहकता और इतना स्वादु
भरा है कि जिसको एक बार इस अमृत कि बूंद प्राप्त हो गयी , उसकी रूचि उत्तरोत्तर
बढ़ती ही रहती है |
गीता एक सर्वमान्य और प्रमाणस्वरूप
अलौकिक ग्रन्थ है | एक छोटे-से आकार में इतना विशाल योग-भक्ति-ज्ञान से पूर्ण
ग्रन्थ संसार की प्रचलित भाषाओं में दूसरा कोई नहीं है | इसमें सम्पूर्ण वेदों का
सार संग्रह किया हुआ है | इसका संस्कृत बहुत ही मधुर, सरस, सरल और रुचिकर है |
इसकी भाषा बहुत ही उत्तम एवं रहस्ययुक्त है | दुनिया की किसी भी भाषा में ऐसा
सुबोध ग्रन्थ नहीं है | मनुष्य थोड़ा अभ्यास करने से भी सहज ही इसको समझ सकता है;
परन्तु इसका आशय इतना गूढ़ और गंभीर है कि आजीवन निरंतर
अभ्यास करते रहने पर भी उसका अंत नहीं आता,वरं प्रतिदिन नये-नये भाव उत्पन्न होते
रहते है; इससे वह सदा नवीन ही बना रहता है |
गीता
में सभी धर्मों का सार भरा हुआ है | संसार में जितने भी ग्रन्थ हैं, उनमें
गीता-जैसे गूढ़ और उन्नत विचार कहीं दृष्टिगोचर नहीं होते | गीता के साथ तुलना की
जाय तो उसके सामने जगतका समस्त ज्ञान तुच्छ है | गीता वर्तमान समय में भी
शिक्षित-अशिक्षित, भारतीय या भारतेतर सभी समुदायों के लिए सर्वथा उपयुक्त ग्रन्थ
है | गीता-जैसे विलक्षण एकता तथा समता सिखानेवाला अपूर्व उपदेश कहीं नहीं दिखायी
पड़ता | गागर में सागर की भांति थोड़े में ही अनन्त तत्त्व-रहस्य से भरा हुआ ग्रन्थ अन्य नहीं देखने में आता |
गीता का उपदेश बहुत ही उच्चकोटि का
है | गीता में सबसे ऊँचा ज्ञान, सबसे ऊँची भक्ति और
सबसे ऊँचा निष्कामभाव भरा हुआ है | गीता के उपदेश को देखकर मनुष्य के हृदय में
स्वाभाविक ही यह प्रभाव पड़ता है कि यह मनुष्य रचित नहीं है|....शेष अगले ब्लॉग में
जयदयाल गोयन्दका ‘गीता पढ़ने के लाभ’ पुस्तक से, कोड
नं०३०४
