※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 9 दिसंबर 2012

* गीता पढ़ने के लाभ *

वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूरमर्दनं | देवकी परमानन्दम कृष्णं वंदे जगद्गुरुं ||

श्रीमद्भग्वद्गीता एक परम रहस्यमय अत्यंत महत्त्वपूर्ण सार्वभौम ग्रन्थ है | यह साक्षात् भगवान की दिव्य वाणी है, उनके हृदय का उद्गार है | इसका महत्त्व बतलाने की वाणी में शक्ति नहीं है | इसकी महिमा अपरिमेय है, यथार्थ में इसका वर्णन कोई नहीं कर सकता |शेष, महेष, गणेश , दिनेश भी इसकी महिमा को पूरी तरह सेनही कह सकते , फिर मनुष्य की तो बात ही क्या है | इतिहास-पुराण आदि में जगह-जगह इसकी महिमा गायी गयी है, किन्तु उस सबको एकत्र करने पर भी यह नहीं कहा जा सकता कि इसकी महिमा इतनी ही है; क्योंकि इसकी महिमा का कोई पार नहीं है |


        गीता आनंद-सुधा का सीमारहित छलकता हुआ समुद्र है | इसमें भावों और अर्थों की इतनी गम्भीरता और व्यापकता है कि मनुष्य जितनी ही बार इसमें डुबकी लगाता है , उतनी ही बार वह नित्य नवीन आनन्द को प्राप्तकर मुदित और मुग्ध होता है | रत्नाकर सागर में डुबकी लगाने वाला चाहे रत्नों से वंचित रह जाय, पर इस दिव्य रसामृत-समुद्र में डुबकी लगाने वाला कभी खाली हाथ नहीं निकलता | इसकी सरस और सार्थ-सुधा इतनी स्वादु है कि उसके ग्रहण से नित्य नया स्वाद मिलता रहता है | रसिकशेखर श्यामसुन्दर की इस रसीली वाणी में इतनी मोहकता और इतना स्वादु भरा है कि जिसको एक बार इस अमृत कि बूंद प्राप्त हो गयी , उसकी रूचि उत्तरोत्तर बढ़ती ही रहती है |
   
   गीता एक सर्वमान्य और प्रमाणस्वरूप अलौकिक ग्रन्थ है | एक छोटे-से आकार में इतना विशाल योग-भक्ति-ज्ञान से पूर्ण ग्रन्थ संसार की प्रचलित भाषाओं में दूसरा कोई नहीं है | इसमें सम्पूर्ण वेदों का सार संग्रह किया हुआ है | इसका संस्कृत बहुत ही मधुर, सरस, सरल और रुचिकर है | इसकी भाषा बहुत ही उत्तम एवं रहस्ययुक्त है | दुनिया की किसी भी भाषा में ऐसा सुबोध ग्रन्थ नहीं है | मनुष्य थोड़ा अभ्यास करने से भी सहज ही इसको समझ सकता है; परन्तु इसका आशय इतना गूढ़ और गंभीर है कि आजीवन निरंतर अभ्यास करते रहने पर भी उसका अंत नहीं आता,वरं प्रतिदिन नये-नये भाव उत्पन्न होते रहते है; इससे वह सदा नवीन ही बना रहता है |
      
    गीता में सभी धर्मों का सार भरा हुआ है | संसार में जितने भी ग्रन्थ हैं, उनमें गीता-जैसे गूढ़ और उन्नत विचार कहीं दृष्टिगोचर नहीं होते | गीता के साथ तुलना की जाय तो उसके सामने जगतका समस्त ज्ञान तुच्छ है | गीता वर्तमान समय में भी शिक्षित-अशिक्षित, भारतीय या भारतेतर सभी समुदायों के लिए सर्वथा उपयुक्त ग्रन्थ है | गीता-जैसे विलक्षण एकता तथा समता सिखानेवाला अपूर्व उपदेश कहीं नहीं दिखायी पड़ता | गागर में सागर की भांति थोड़े में ही अनन्त तत्त्व-रहस्य से भरा हुआ ग्रन्थ  अन्य नहीं देखने में आता |
   
   गीता का उपदेश बहुत ही उच्चकोटि का है | गीता में सबसे ऊँचा ज्ञान, सबसे ऊँची भक्ति और सबसे ऊँचा निष्कामभाव भरा हुआ है | गीता के उपदेश को देखकर मनुष्य के हृदय में स्वाभाविक ही यह प्रभाव पड़ता है कि यह मनुष्य रचित नहीं है|....शेष अगले ब्लॉग में


जयदयाल गोयन्दका ‘गीता पढ़ने के लाभ’ पुस्तक से, कोड नं०३०४