※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 22 दिसंबर 2012

श्रीमद्भगवद्गीता का प्रभाव


!! ॐ श्री परमात्मने नमः !!

गत ब्लॉग से आगे..... 

        अब यदि यह पूछा जाय कि गीता में ऐसे कौन-से श्लोक है जिनमें से केवल एक को ही काम में लाने पर मनुष्य का कल्याण हो जाय, इसका ठीक-ठीक निश्चय करना बहुत ही कठिन है; क्योंकि गीता के प्राय: सभी श्लोक ज्ञान पूर्ण और कल्याणकारक है | फिर भी सम्पूर्ण गीता में एक तिहाई श्लोक तो ऐसे दीखते है कि जिनमें से एकको भी भलीभाँति समझकर काम में लाने से अर्थात् उसके अनुसार आचरण बनाने से मनुष्य परमपद को प्राप्त कर सकता है | उन श्लोकों की पूर्ण संख्या विस्तारभय से न देकर पाठकों की जानकारी के लिये  कतिपय श्लोकों की संख्या निचे लिखी जाती है-


श्रीमद्भगवतगीता अध्याय २
श्लोक संख्या २०, ७१
श्रीमद्भगवतगीता अध्याय ३
श्लोक संख्या १७-३०
श्रीमद्भगवतगीता अध्याय ४
श्लोक संख्या २०-२७
श्रीमद्भगवतगीता अध्याय ५
श्लोक संख्या १०, १७,१८,२९
श्रीमद्भगवतगीता अध्याय ६
श्लोक संख्या १४,३०,३१,४७
श्रीमद्भगवतगीता अध्याय ७
श्लोक संख्या ७,१४,१९
श्रीमद्भगवतगीता अध्याय ८
श्लोक संख्या ७,१४,२२
श्रीमद्भगवतगीता अध्याय ९
श्लोक संख्या २६,२९,३२,३४
श्रीमद्भगवतगीता अध्याय १०
श्लोक संख्या ९,४२
श्रीमद्भगवतगीता अध्याय ११
श्लोक संख्या ५४,५५
श्रीमद्भगवतगीता अध्याय १२
श्लोक संख्या २,,१३,१४
श्रीमद्भगवतगीता अध्याय १३
श्लोक संख्या १५,२४,२५,३०
श्रीमद्भगवतगीता अध्याय १४
श्लोक संख्या १९,२६
श्रीमद्भगवतगीता अध्याय १५
श्लोक संख्या ५,२५
श्रीमद्भगवतगीता अध्याय १६
श्लोक संख्या १
श्रीमद्भगवतगीता अध्याय १७
श्लोक संख्या १६
श्रीमद्भगवतगीता अध्याय १८
श्लोक संख्या ४६,५६,५७,६२,६५,६६

     इस प्रकार उपर्युक्त श्लोकों में से एक श्लोक को भी अच्छी तरह काम में लाने वाला पुरुष मुक्त हो सकता है | जो सम्पूर्ण गीता को अर्थ और भाव सहित समझकर श्रद्धा-प्रेम से अध्ययन करता हुआ उसके अनुसार चलता है उसके तो रोम-रोम में गीता ठीक उसी प्रकार रम जाती है जैसे परम भागवत श्री हनुमान जी के रोम-रोम में रामरम गए थे उस समय ऐसा प्रतीत होता है कि मानो उसके  रोम-रोम में गीता का सुमधुर संगीत-स्वर प्रतिध्वनित हो रहा है |.........शेष अगले ब्लॉग में


नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!

जयदयाल गोयन्दका, तत्व-चिंतामणि, कोड ६८३, गीताप्रेस गोरखपुर