!! ॐ श्री परमात्मने नमः !!
गत ब्लॉग से आगे.....
अब यदि यह पूछा
जाय कि गीता में ऐसे कौन-से श्लोक है जिनमें से केवल एक को ही काम में लाने पर
मनुष्य का कल्याण हो जाय,
इसका ठीक-ठीक निश्चय करना बहुत ही कठिन है; क्योंकि
गीता के प्राय: सभी श्लोक ज्ञान पूर्ण और कल्याणकारक है | फिर
भी सम्पूर्ण गीता में एक तिहाई श्लोक तो ऐसे दीखते है कि जिनमें से एकको भी भलीभाँति
समझकर काम में लाने से अर्थात् उसके अनुसार आचरण बनाने से मनुष्य परमपद को प्राप्त
कर सकता है | उन श्लोकों की पूर्ण संख्या विस्तारभय से न
देकर पाठकों की जानकारी के लिये कतिपय श्लोकों की
संख्या निचे लिखी जाती है-
श्रीमद्भगवतगीता अध्याय २
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श्लोक संख्या २०, ७१
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श्रीमद्भगवतगीता अध्याय ३
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श्लोक संख्या १७-३०
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श्रीमद्भगवतगीता अध्याय ४
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श्लोक संख्या २०-२७
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श्रीमद्भगवतगीता अध्याय ५
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श्लोक संख्या १०, १७,१८,२९
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श्रीमद्भगवतगीता अध्याय ६
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श्लोक संख्या १४,३०,३१,४७
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श्रीमद्भगवतगीता अध्याय ७
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श्लोक संख्या ७,१४,१९
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श्रीमद्भगवतगीता अध्याय ८
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श्लोक संख्या ७,१४,२२
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श्रीमद्भगवतगीता अध्याय ९
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श्लोक संख्या २६,२९,३२,३४
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श्रीमद्भगवतगीता अध्याय १०
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श्लोक संख्या ९,४२
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श्रीमद्भगवतगीता अध्याय ११
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श्लोक संख्या ५४,५५
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श्रीमद्भगवतगीता अध्याय १२
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श्लोक संख्या २,८,१३,१४
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श्रीमद्भगवतगीता अध्याय १३
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श्लोक संख्या १५,२४,२५,३०
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श्रीमद्भगवतगीता अध्याय १४
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श्लोक संख्या १९,२६
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श्रीमद्भगवतगीता अध्याय १५
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श्लोक संख्या ५,२५
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श्रीमद्भगवतगीता अध्याय १६
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श्लोक संख्या १
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श्रीमद्भगवतगीता अध्याय १७
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श्लोक संख्या १६
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श्रीमद्भगवतगीता अध्याय १८
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श्लोक संख्या ४६,५६,५७,६२,६५,६६
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इस प्रकार उपर्युक्त श्लोकों में से एक श्लोक
को भी अच्छी तरह काम में लाने वाला पुरुष मुक्त हो सकता है | जो सम्पूर्ण गीता को अर्थ और भाव सहित समझकर श्रद्धा-प्रेम से अध्ययन करता
हुआ उसके अनुसार चलता है उसके तो रोम-रोम में गीता ठीक उसी प्रकार रम जाती है जैसे
परम भागवत श्री हनुमान जी के रोम-रोम में ‘राम’ रम गए थे उस समय ऐसा प्रतीत होता है कि मानो उसके रोम-रोम में गीता का सुमधुर संगीत-स्वर प्रतिध्वनित हो रहा है |.........शेष अगले ब्लॉग में
नारायण ! नारायण !! नारायण
!!! नारायण !!! नारायण !!!
जयदयाल गोयन्दका, तत्व-चिंतामणि, कोड ६८३, गीताप्रेस गोरखपुर