※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

देश के कल्याण के लिए संस्कृत,आयुर्वेद,हिंदी तथा गीता-रामायण के प्रचार की आवश्यकता


|| श्री हरी ||

देश के कल्याण के लिए संस्कृत,आयुर्वेद,हिंदी तथा गीता-रामायण के प्रचार की आवश्यकता

आयुर्वेद –विज्ञान

इसी प्रकार आयुर्वेद –विज्ञान का बड़ी तेजी से अभाव होता जा रहा है | आयुर्वेद चिकित्सा, निदान और औषधियो के नाम,रूप,स्वभाव,गुण और उनके निर्माण का जो महान ज्ञान त्रिकाल्ज्ञ ऋषियो को था, वह क्रमश: लुप्त होता ही चला गया | इस समय हमारे अनुमान से प्राय: नब्बे प्रतिशत लुप्त हो चुका है और जो बचा-खुचा है, उसका भी दिन-पर-दिन हास होता जा रहा है | आस्थावान विद्वान वैध उठते चले जा रहे है | जो है, उनके प्रति अनास्था बढ़ रही है | इसी का परिणाम है की आज देश के बड़े-बड़े  वैध भी प्राय: अपने बच्चे को डाँक्टरी पढ़ाते है और स्वयं भी डाँक्टरी दवाओ का व्यवहार करते देखे जाते है | यह निश्चित है की भारतवासियो के लिये आयुर्वेदोक्त देशी औषधियो जितनी लाभप्रद हो सकती हैं, उतनी विदेशी नहीं | कहा भी है - ‘जो जिस देश का प्राणी है, उसके लिए उसी देश से उत्पन्न औषधि हितकारी है |’

इस देश में आयुर्वेद-विज्ञान एक दिन कितना उन्नत था – इसका पता महाभारत की एक कथा से लगता है | महाभारत के आदिपर्व में यह प्रसंग प्राप्त होता है की कश्यप नाम के एक श्रेष्ठ ब्राह्मण थे | वे मृत व्यक्ति को भी औषधिओ से जीवित करने की चिकित्सा विधि जानते थे | जब उन्हें पता लगा की राजा परीक्षित को तक्षक नाग डसने वाला है, तब वे परीक्षित के पास जाने के लिए घर से चले | रास्ते में उन्हें तक्षक से भेट हो गयी | मानव-रूप धारी तक्षक के पूछने पर कश्यप ने अपने वहा जानेका हेतु बतलाया की ‘राजा परीक्षित को तक्षक काटेगा तो मैं उन्हें अपनी औषधि से जिला दूँगा |’ यह सुनकर तक्षक ने कहा, ‘मैं ही तक्षक हूँ | मेरे काटे हुए को तुम जीवित नहीं कर सकते |’ कश्यप ने कहा – ‘मैं तुम्हारे डसे हुए को जिला दूंगा |’ इस पर तक्षक बोला – ‘मैं इस वृक्ष को डस कर भस्म करता हूँ , तुम इसे हरा-भरा कर दो |’ तक्षक के काटते  ही वृक्ष जलकर भस्म हो गया | पर कश्यप ने मन्त्र और औषधिओ के बल से पुन: उससे जीवित कर तत्काल हरा-भरा कर दिया | तक्षक ने अपने मान की रक्षा के लिए कश्यप ब्राह्मण को बहुत-सा धन देकर उसे वह से लौटा दिया |

इससे हमे यह ज्ञात होता है की हमारे यहाँ आयुर्वेद ने कितनी अद्भूत उन्नति की थी, जिसके द्वारा मृत मनुष्य ही नहीं, समूल जले हुए वृक्ष को हरा-भरा किया जा सकता था | ऐसी आदरणीय विद्या का शनै: –शनै: लोप हुआ और होता जा रहा है,यह कितने परिताप का विषय है | अब भी यह विज्ञान जिस रूप में वर्तमान है, उस पर यदि सरकार तथा देश् वासी और निष्टावान सद् वैध ध्यान देकर इसके रक्षण, अन्वेक्षण और सवर्धन का प्रयत्न करें, इसके गुणों को प्रकाश में लाये तो इसमें इतने महान गुण छिपे है की उनके लिए सबके सम्मिलित  प्रयत्न की आवस्यकता है | सबको चाहिए की इस और ध्यान देकर आयुर्वेद की रक्षा और उन्नति करके अपने कर्तव्य का पालन करे |

डाँक्टरी दवाओ में प्राय: मॉस, मज्जा, चर्बी, ग्रंथियाँ, मदिरा आदि अपवित्र घ्रणित पदार्थो का सन्निवेश रहता है, जो सब प्रकार से अपवित्र, हिंसापूर्ण  अतएव अवांछनीय है | देशवासियो को चाहिए की विदेशी डाक्टरी दवाईओ को कतई काम में न लेकर चरक, सुश्रुत, वाग्भट आदि द्वारा रचित आयुर्वेदीय शास्त्रों में बतलाई हुई वनस्पति,धातु और रस आदि पवित्र  दवाओ  का सेवन दृढ नियम ले ले | यदि किसी से सर्वथा ऐसा न हो सके तो कम-से-कम यह तो निश्चय करे की जहा तक हो डाक्टरी दवा काम में न लेकर देशी आयुर्वेदिय  दवा के प्रयोग की ही औषधी रूप से चेष्टा रखेंगे | इन ग्रंथो और औषधियो के निर्माणकरता त्रिकालग्य ऋषि और अनुभवी थे, उनका अनुभव और ज्ञान अलौकिक था | ऐसा अनुभव वर्तमान युग के मनुष्य में संभव नहीं है | हमे उन ऋषियो के अनुभव का ज्ञान का सम्मान करके उनसे लाभ उठाना चाहिए |
नारायण    नारायण   नारायण   नारायण    नारायण

ब्रह्मलीन परम श्रद्धेय श्री जयदयालजी गोयन्दका

कल्याण अंक वर्ष ८५, संख्या ९, पन्ना न० ८७६, गीताप्रेस, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश २७३००५