※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 12 जनवरी 2013

ब्रह्मचर्य -1-

 


आज की शुभ तिथिपंचांग
 पौष शुक्ल,प्रतिपदा, शनिवार, वि० स० २०६९


       ब्रह्मचर्य का यौगिक अर्थ है ब्रह्म की प्राप्ति के लिए वेदों का अध्ययन करना | प्राचीन काल में छात्रगण ब्रह्म की प्राप्ति के लिए गुरु के यहाँ रहकर सावधानी के साथ वीर्य की रक्षा करते हुए वेदाध्ययन करते थे | इसलिए धीरे-धीरे ‘ब्रह्मचर्य’ शब्द वीर्यरक्षा के अर्थ में रूढ़ हो गया | आज हमें इसी वीर्य रक्षा के सम्बन्ध में कुछ विचार करना है | वीर्य रक्षा ही जीवन है और वीर्य का नाश ही मृत्यु है | वीर्य रक्षा के प्रभाव से ही प्राचीन काल के लोग दीर्घजीवी, निरोग, हृष्ट-पुष्ट, बलवान, बुद्धिमान, तेजस्वी, शूरवीर और दृढसंकल्प होते थे | वीर्यरक्षा के कारण ही वे शीत, आतप, वर्षा आदि को सहकर नाना प्रकार के तप करने में समर्थ होते थे | ब्रह्मचर्य के बल से ही वे प्राणवायु को रोककर शरीर और मनकी शुद्धि के द्वारा नाना प्रकार के योग-साधनो में सफलता  प्राप्त करते थे | ब्रह्मचर्य के बलसे ही वे थोड़े ही समय में नाना प्रकार की विद्याओं को सीखकर अपने ज्ञान के द्वारा अपना और जगत का कल्याण करने में समर्थ होते थे | शरीर में सार वस्तु वीर्य ही है | इसी के नाश से आज हमारा देश रसातल को पहुँच गया है | ब्रह्मचर्य के नाश के कारण ही आज हमलोग नाना प्रकार की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं , थोड़े ही अवस्था में काल के गाल में जा रहे हैं | इसी के कारण आज हमलोग अपने बल, तेज,वीरता और आत्मसम्मान को खोकर पराधीनता की बेड़ी में जकड़े हुए हैं और जो हमारा देश किसी समय विश्व का सिरमौर और सभ्यता का उद्गमस्थान बना हुआ था, वही आज दूसरों के द्वारा लांछित और पददलित हो रहा है | विद्या-बुद्धि, बल-वीर्य, कला-कौशल—सबमे आज हम पिछड़े हुए हैं | इसी के कारण आज हम चरित्र से भी गिर गये हैं | सारांश यह है कि किसी भी बात को लेकर आज हम संसार के सामने अपना मस्तक ऊँचा नहीं कर सकते | वीर्य का नाश ही हमारी इस गिरी हुई दशा का प्रधान कारण मालुम होता है | वीर्य नाश से शरीर, बल, तेज, बुद्धि, धन , मान, लोक, परलोक- सबकी हानि होती है | परमात्मा की प्राप्ति तो वीर्य रक्षा न करने वाले से कोसों दूर रहती है |
   
        ब्रह्मचर्य के बिना कोई भी कार्य सिद्ध नहीं होता | रोग से मुक्त होने के लिए, स्वास्थ्य-लाभ के लिए, बल-बुद्धि के विकास के लिए, विद्याभ्यास के लिए तथा योगाभ्यास के लिए तो ब्रह्मचर्य की बड़ी भारी आवश्यकता है | उत्तम संतान की प्राप्ति, स्वर्ग की प्राप्ति, सिद्धियों की प्राप्ति, अंतःकरण की शुद्धि तथा परमात्मा की प्राप्ति – ब्रह्मचर्य से सबकुछ संभव है और ब्रह्मचर्य के बिना कुछ भी नहीं हो सकता | सांख्ययोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग, राजयोग, हठयोग—सभी साधनों में ब्रह्मचर्य की आवश्यकता है | अतः लोक-परलोक में अपना हित चाहनेवाले को बड़ी सावधानी एवं तत्परता के साथ वीर्यरक्षा के लिए चेष्टा करनी चाहिए | 

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     

जयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक कोड ६८३ , गीताप्रेस गोरखपुर