※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 14 जनवरी 2013

ब्रह्मचर्य -3-



|| श्री हरिः ||


आज की शुभ तिथिपंचांग

पौष शुक्ल,तृतीया, सोमवार, वि० स० २०६९


परमात्माप्राप्ति के उद्देश्य से किये गए उपर्युक्त ब्रह्मचर्य के पालनमात्र से मनुष्य का कल्याण हो सकता है, यह बात भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता के आठवें अध्याय के ११वें श्लोक में कही है | भगवान् कहते हैं—

यदक्षरं वेदविदो वदन्ति विशन्ति यद्यतयो वीतरागाः |
यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदम् संग्रहेण प्रवक्ष्ये ||

   ‘वेदके जानने वाले विद्वान जिस सच्चिदानंदघनरूप परमपद को अविनाशी कहते हैं,  आसक्तिरहित यत्नशील संन्यासी महात्माजन जिसमें प्रवेश करते हैं और जिस परमपद को चाहनेवाले ब्रह्मचारी लोग ब्रह्मचर्य का आचरण करते हैं, उस परमपद को मैं तेरे लिए संक्षेप में कहूँगा |’
    
कठोपनिषद में इस श्लोक से मिलता-जुलता मन्त्र आया है—

सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति तपाँ्सि सर्वाणि च यद्वदन्ति |
यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदँ्संग्रहेण ब्रवीम्योमित्येतत् ||  ( १ | २ | १५ )

‘सारे वेद जिस पद का वर्णन करते हैं, समस्त तपों को जिसकी प्राप्ति का साधन बतलाते हैं तथा जिसकी इच्छा रखनेवाले ब्रह्मचारी ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, उस पद को मैं तुम्हे संक्षेप में बताता हूँ—‘ॐ’ यही वह पद है |’
      
 उक्त दोनों ही मन्त्रों में परमपद की इच्छा से ब्रह्मचर्य के पालन की बात आयी है, इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि परमात्मा की प्राप्ति के उद्देश्य से किये गए ब्रह्मचर्य के पालनमात्र से मनुष्य का कल्याण हो सकता है | क्षत्रियकुल-चूड़ामणि वीरवर भीष्म की जो इतनी महिमा है, वह उनके अखण्ड ब्रह्मचर्य-व्रत को लेकर ही है | इसी के कारण उनका ‘भीष्म’ नाम पड़ा और इसी के प्रताप से उन्हें अपने पिता शान्तनु से इच्छामृत्यु का वरदान मिला, जिसके कारण वे संसार में अजेय हो गये | यही कारण था कि वे सहस्त्रबाहु- जैसे अप्रतिम योद्धा की भुजाओं का छेदन करनेवाले तथा इक्कीस बार पृथ्वी को निःक्षत्रिय कर देनेवाले महाप्रतापी परशुराम से भी नहीं हारे | इतना ही नहीं, परात्पर भगवान् श्रीकृष्ण को भी इनके कारण महाभारत युद्ध में शस्त्र ग्रहण करना पड़ा | उनकी यह सब महिमा ब्रह्मचर्य के ही कारण थी | वे भगवान् के अनन्य भक्त, आदर्श पितृभक्त तथा महान ज्ञानी एवं शास्त्रों के ज्ञाता भी थे ; परन्तु उनकी महिमा का प्रधान कारण उनका आदर्श ब्रह्मचर्य ही था | इसी के कारण वे अपने अस्त्र विद्या के गुरु भगवान् परशुराम के कोपभाजन हुए, परन्तु विवाह न करनेका अपना हठ नहीं छोड़ा | धन्य ब्रह्मचर्य ! भक्तश्रेष्ठ हनुमान, सनकादि मुनीश्वर, महामुनि शुकदेव तथा बालखिल्यादि ऋषि भी अपने ब्रह्मचर्य के लिए प्रसिद्ध हैं |

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!     
जयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक कोड ६८३ , गीताप्रेस गोरखपुर