आज की शुभ
तिथि – पंचांग
पौष कृष्ण १०,
सोमवार, वि० स० २०६९
अब
संध्योपासना के विषय में कुछ लिखा जाता है | श्रद्धा, प्रेम और सत्कारपूर्वक की हुई
संध्योपासना से सब पापो का नाश होकर आत्मा का कल्याण हो सकता है | सब द्विजातियो
को प्रात:, मध्यान्ह और सायंकाल की संध्या श्रद्धा, प्रेम और सत्कारपूर्वक करनी
चाहिये | तीनकाल की ना कर सके तो प्रात:-सांय संध्या तो अवश्य करनी चाहिये | द्विज
होकर जो संध्या नहीं करता वह प्रायश्चित का भागी और शुद्र के समान समझा जाता है |
द्विजो को संध्या का त्याग कभी नहीं करना चाहिये | रात्री के अंत और दिन के आरम्भ
में जो ईश्वरोपासना की जाती है वह प्रात:संध्या और दिन के अन्त में तथा रात्रि के
आरम्भ में जो संध्या की जाती है वह सांय-संध्योपासना कहलाती है | विधिपूर्वक ठीक समय पर करना ही
सत्कारपूर्वक है | जैसे समय पर बोया हुआ बीज ही लाभप्रद होता है, उसी प्रकार ठीक
समय पर की हुई संध्योपासना ही उत्तम फल देने वाली होती है | असमय में खेत में बोया
हुआ अनाज प्रथम तो उगता नहीं है और यदि उग आया तो विशेष फल दायक नहीं होता, अत:
हमे ठीक समय पर विधिसहित संध्या करने के लिये तत्पर होना चाहिये | प्रातकाल: की
संध्या तारों के रहते करना उत्तम, तारो के चिप जाने पर माध्यम और सूर्योदय के
अनन्तर कनिस्ठ मानी गई है –
उतमा तारकोपेता मध्यमा लुप्त्तारका |
कनिष्ठा सूर्य सहिता प्रात:संध्या त्रिधा स्मरता ||
श्री मन्न नारायण नारायण नारायण...श्री मन्न
नारायण नारायण नारायण.....
शेष
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जयदयाल
गोयन्दका, तत्व चिंतामणि, कोड ६८३, गीताप्रेस गोरखपुर