※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 6 जनवरी 2013

शीघ्र कल्याण कैसे हो ? -६



आज की शुभ तिथि – पंचांग

पौष कृष्ण ९, रविवार, वि० स० २०६९

 
यों तो गीता के पाठ से लाभ है, क्योकि भगवान कहते है की –
अध्येष्यते च य इमं धर्म्यं संवादमावयो: |                       
ज्ञानयज्ञैन  तेनाह्मिषट: स्यामिति मे मति: ||  (गीत १८ |७०)


‘हे अर्जुन ! जो पुरुष इस धर्ममय हम दोनों के संवादरूप गीताशास्त्र को पढ़ेगा अर्थात नित्य पाठ करेगा, उसके द्वारा मैं ज्ञानयज्ञ से पूजित होऊंगा, ऐसा मेरा मत है |’

इस प्रकार मुक्तिरूप प्रसादी तो उसे मिल ही जायेगी, पर धारण करने पर तो एक ही श्लोक मुक्ति का दाता हो सकता है | पूरी गीता का नहीं तो, कम-से-कम एक अध्याय का पाठ तो कर ही लेना चाहिये | इस प्रकार जिसने चौबीस आवृति कर ली, उसने एक वर्ष में चौबीस ज्ञानीयज्ञ कर डाले | जो पढना नहीं जानता, वह सुनकर भी यदि आचरण करे तो मुक्ति का अधिकारी हो सकता है | भगवान कहते है –
अन्ये त्वेवंमजानन्तं: श्रुत्वान्येभ्य उपासते |
तेअपि चाति तरत्येव मृत्युं श्रुति परायणा: || (गीता १३ |२५)

‘दुसरे अर्थात जो मन्दबुद्धि वाले पुरुष है वे स्वयं इस प्रकार न जानते हुए, दूसरो से अर्थात तत्व के जाने वाले पुरुषो से सुनकर ही उपासना करते है अर्थात उन पुरुषो के कहने के अनुसार  ही श्रद्धारहित तत्पर हुए साधन करते है और वे सुनने के परायण हुए पुरुष भी मृत्यु रूप संसार-सागर को निस्सन्देहः तर जाते है |’

कितने आदमी नित्य ही गीता सुनते है पर सुनने से ही काम न चलेगा | आज से ही यह संकल्प कर लेना चाहिये की प्रत्येक प्रकार से व्यवहार में लाकर हम अपना जीवन गीता के कथनानुसार बनाने की चेष्टा करेंगे | उत्तम लोगो का अधिकारी तो श्रद्धा से सुनने वाला भी हो सकता है | क्योंकि भगवान कहते है –
 
‘जो पुरुष श्रद्धायुक्त और दोष दृष्टि से रहित हुआ इस गीताशास्त्र का श्रवण मात्र भी करेगा वह भी पापो से मुक्त होकर उत्तम करने वालो के श्रेष्ठ लोकोको प्राप्त होवेगा अतएव कम-से-कम गीता के श्रवण के द्वारा यमराज का द्वार तो बंद कर ही देना चाहिये |


श्री मन्न नारायण नारायण नारायण, श्री मन्न नारायण नारायण नारायण.....


शेष अगले ब्लॉग में.......
जयदयाल गोयन्दका, तत्व चिंतामणि, कोड ६८३, गीताप्रेस गोरखपुर