आज की शुभ
तिथि – पंचांग
पौष कृष्ण ८,
शनिवार, वि० स० २०६९
अब गीता के सम्बन्ध में विचार किया जाता है | एक भाई गीता का आघोपांन्त पाठ करता है, पर उसका अर्थ और भाव कुछ भी नहीं समझता | पाठ के समय उसका मन भी संसार में चला जाता है | संकल्पों की अधिकता के कारण उसे यह भी ज्ञान नहीं की मैं किस अध्याय और किस श्लोक का पाठ कर रहा हूँ | उसके लिए यह कार्य एक प्रकार से बेगार-सा है | पर बेगार है भगवान की, इसलिए वह व्यर्थ नहीं जा सकती |
दूसरा
भाई प्रत्येक श्लोक का अर्थ समझकर प्रेमपूर्वक पाठ करता है | तत्व और रहस्य को
समझकर प्रेमपूर्वक पाठ करता है | तत्व और रहस्य को समझकर पाठ करने से केवल एक ही
श्लोक के पाठ से जो फल मिलता है वह पुरे सात सौ श्लोको के साधारण पाठ से भी नही मिलता
| एक साधक पूर्वापर ध्यान देकर सारी गीता का पाठ करता है, पर आचरण में एक बात भी
नहीं लाता | वह श्लोक पढ़ लेता है –
देवद्विज् गुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम् |
ब्रह्मचर्यंहिसा च शारीरं तप उच्यते || (गीता १७ |१४)
श्री
मन्न नारायण नारायण नारायण, श्री मन्न नारायण नारायण नारायण.....
शेष
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जयदयाल
गोयन्दका, तत्व चिंतामणि, कोड ६८३, गीताप्रेस गोरखपुर