※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 9 जनवरी 2013

शीघ्र कल्याण कैसे हो ?-9-

आज की शुभ तिथि – पंचांग  
पौष कृष्ण १२,बुधवार, वि० स० २०६९

सूर्य भगवान के दर्शन, ध्यान और अर्ध्य के समय ऐसा समझना चाहिये कि हम भगवान का साक्षात् दर्शन और स्वागतादि कर रहे है | इस प्रकार प्रत्येक बात को खूब समझकर पद-पद पर प्रेम में मुग्ध होना चाहिये एवं मन में इस बात का दृढ विश्वास रखना कि प्रेम और आदरपूर्वक समय पर सूर्य भगवान की उपासना करते-करते हम उनकी कृपा से अवश्य ही परमधाम को प्राप्त कर सकेंगे | क्योंकि प्रेमी और श्रद्धालु उपासक द्वारा की हुई उपासना की सुनवायी अवश्य ही होगी | ईशोपनिषद में भी लिखा है कि उपासक मरणकाल में परम धाम में जाने के लिए सूर्य भगवान से प्रार्थना करता है |

हिरण्मयेन पात्रैणसत्यस्यापिहितं मुखम् | 
              तत्वं पूषत्रपावृणु सत्यधर्माय द्रष्ट्यये ||  (मन्त्र १५)

 ‘हे सुर्य !  सत्यरूप आपका मुख सुवर्ण-सद्र्श पात्र द्वारा ढका हुआ है उसको आप हटाईये, जिससे कि मुझे आप सत्य धर्म वाले ब्रह्म के दर्शन हो |’

श्रद्धा,प्रेम और आदरपूर्वक उपासना करने वाले उपासक की उपर्युक्त प्रार्थना स्वीकृत होती है | यह बात भी युक्तियुक्त भी है कि कोई भी सेवक जब अपने स्वामी की श्रद्धा और प्रेम से सेवा करता है  तो उत्तम पुरुष उसके प्रत्युपकारार्थ अपनी शक्ति के अनुसार उसका हित साधन करता ही है | फिर सूर्य भगवान की श्रद्धा-भक्ति से उपासना करने वाले उपासक के कल्याण में तो सन्देह ही क्या है ?  

महाभारत में प्रसिद्ध है कि महाराज युधिष्ठिर ने तो अपने भक्त कुत्ते को अपने साथ स्वर्ग में ले जाना चाहा था | फिर सूर्य भगवान हमारा कल्याण करे इसमें तो कहना ही क्या है?

अत: जिन्हें शीघ्र-शीघ्र परम शान्ति प्राप्त करने की इच्छा हो, उन्हें उचित है कि वे अपने समय का सदुपयोग करते हुए उपर्युक्त शैली से साधन में द्रढ़ता पूर्वक तत्पर हो जाये |

   
श्री मन्न नारायण नारायण नारायण, श्री मन्न नारायण नारायण नारायण.....

जयदयाल गोयन्दका, तत्व चिंतामणि, कोड ६८३, गीताप्रेस गोरखपुर