※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

पाप का मूल आसक्ति -1-



|| श्री हरि: ||
आज की शुभ तिथि – पंचांग
माघ कृष्ण, पंचमी, शुक्रवार, वि० स० २०६९
February 01, 2013, Friday

         पाप का मूल आसक्ति

पहली बात तो यह है कि मनुष्य को सदा के लिए पाप से बचना चाहिये, यहाँ तीर्थ पर तो पाप करने ही नहीं चाहिये | लोग तीर्थ में आते है तो स्वाभाविक ही यहाँ आकर स्नान करते हैं, कुछ त्याग करके जाते है | आपसे यही प्रार्थना है कि ऐसी चीज का त्याग करो कि जिस एक के त्याग से ही सबका त्याग हो जाये | कम-से-कम पाप का त्याग तो कर ही देना चाहिये |  पाप काम से उत्पन्न होता है | अर्जुन से भगवान से पुछा-
अथ केन प्रयुक्तोअयं  पापं चरति पूरुष: |
अनिचनापि  वार्ष्णेय बलादिव नियोजित || (गीता ३|३६)
हे कृष्ण ! तो फिर यह मनुष्य स्वयं न चाहता हुआ भी बलात लगाये हुए की भाँती किससे प्रेरित होकर पाप का आचरण करता है ?

आसक्ति से काम की उत्पति है, भगवान के उत्तर दिया
काम एष क्रोध् एष रजोगुनसमुधव |
महाशनो महापाप्मा विद्ययेमिह वैरिणीम् || (गीता ३|३७)
रजोगुण से उत्पन्न हुआ यह काम ही क्रोध है, यह बहुत खानेवाला अर्थात भोगो से कभी न अघाने वाला और बड़ा पापी है, इसको ही तू इस विषय में वैरी जान |
आसक्ति का त्याग हो जाने से सबका त्याग हो जाता है |
राम को बुलाने के लिए आराम को छोड़ना चाहिये, जहाँ आराम है, वहां राम नहीं | वास्तव में आपलोग तो मानते हैं, वह तो झूठा आराम है | आराम तो दूसरा ही है |
जो पुरुष अन्तरात्मा में ही सुखवाला है, आत्मा में ही रमण करनेवाला है तथा जो आत्मा में ही ज्ञानवाला है, वह सच्चिदानंदघन परब्रह्म परमात्मा के साथ एकीभाव को प्राप्त सांख्ययोग शान्त ब्रह्म को प्राप्त होता है |  (गीता ५|२४)
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श्री मन्न नारायण नारायण नारायण.. श्री मन्न नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....

ब्रहमलीन परमश्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका, साधन की आवश्यकता, कोड ११५०, गीताप्रेस, गोरखपुर

प्रवचन –तिथि प्रथम वैसाख शुक्ल ३,सम्वंत १९९१,रात्री स्वर्गाश्रम |