※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

पाप का मूल आसक्ति -2-


|| श्री हरी ||

आज की शुभ तिथि – पंचांग

माघ कृष्ण, षष्ठी,शनिवार, वि० स० २०६९

February 02, 2013, Friday

                           

हरेक बात  में आरामबुद्धि ही मुक्ति में बाधा देती है | शौकीनी आफत है | ऐश प्राय: धन से होता है ऐश में मनुष्य स्वस्थ्य होते हुए भी बीमार है | जो विषय भोगो में रमता है वह  आपने-आपको आग में ढकेलता है | यह नियम लेना चाहिये की भोजन में जो कुछ भी तैयारी हुई, उसी में आनन्द मानना, राग-द्वेष नही करे, इसी प्रकार पहनने के लिए जो मिले उसी में आनन्द मान ले |

नील मील का त्याग करना चाहिये,वस्त्र भी पवित्र, जूते भी पवित्र पहनने चाहिये | चमड़े में हिंसा होती है, चूडी भी पवित्र पहननी चाहिये, लाख की उत्पति कीड़ो से होती है | वाणी को भी पवित्र बनाना चाहिये, वाणी पवित्र, सत्य और विनयुक्त होनी चाहिए |

जो उद्वेग न करने वाला, प्रिय और हितकारक एवं यतार्थ भाषण है तथा जो वेद शास्त्रों के पठनका एवं परमेश्वर के नाम-जप का अभ्यास यह वाणी संबधी तप कहा जाता है | (गीता १७|१५)

ऐसा आचरण करनेवाले की वाणी मेंन फिर वः जो कुछ कहता है वही हो जाता है | व्यवहार पवित्र होना चाहिये | इससे आत्मा पवित्र हो जाती है सत्य व्यवहार करना चाहिये | दुसरे की आत्मा मुग्ध हो जाये ऐसा व्यवहार करना चाहिये | दूसरो की सेवा करनी चाहिये | आराम बुद्धि के त्याग से सब काम हो जाता है | झूठे आराम के त्याग से सच्चा आराम मिलता है |

यहाँ तीर्थ पर व्रत, दान करना उत्तम है | पर यदि वह घर पर असत्य व्यवहार करता है तो ठीक नहीं है | यहाँ आकर तो उत्तम आचरण सीखने चाहिये | फिर सदा के लिये उसे काम में लाना चाहिये,कम-से-कम असत्य को तो छोड़ ही देना चाहिये | यदि आपसे सदाचार उच्च श्रेणी का न हो तो कम-से-कम नुक्सान तो नहीं उठाना चाहिये | ‘आया था कुछ लाभ को खोय चला सब मूल |’ घर में रूठना नहीं चाहिये | क्रोध झूठ बुलाता है | सबसे उत्तम बात तो यह है की क्रोध का त्याग कर दे | यह बडी बुरी आदत है | इसे गंगा के पार ही छोड़ देना चाहिये था | आगे के लिए यह नियम कर ले की भोजन के लिये या अन्य किसी बाट के लिए रूठना नहीं है | जहाँ कलह है वहा क्लेश है,कलियुग है, काल है | किसी घर में कलियुग होतो उसको चरण पकड़ कर धक्का देकर फेक दे | इसके लिए उपाय मौन है | रूठकर नहीं बैठना चाहिये, हस कर रह जाये या उसको उत्तर थोड़े शब्दों में शान्ति से दे | शिक्षा मानकर हँसना चाहिये, मृदु शब्दों में बोलना चाहिये |
 
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श्री मन्न नारायण नारायण नारायण.. श्री मन्न नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....

ब्रहमलीन परमश्रधेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका, साधन की आवश्यकता, कोड ११५०, गीताप्रेस, गोरखपुर

प्रवचन –तिथि प्रथम वैसाख शुक्ल ३,सम्वंत १९९१,रात्री स्वर्गाश्रम |