※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 3 फ़रवरी 2013

पाप का मूल आसक्ति -3-

|| श्री हरि: ||
आज की शुभ तिथि – पंचांग
माघ कृष्ण,सप्तमी,रविवार, वि० स० २०६९
February 03, 2013, Sunday

                                 

क्रोध साक्षात् आग है | अग्नि बाहर जलती है और क्रोध बहुत घरों को अन्दर ही अन्दर जलाता है | उपाय यही है कि आग लगे तो पानी से तर कर दो | भीतर के घर में जब क्रोध आता है तो हृदय जलता है, फिर कठोर वचन जिसे कहे जाते है, उसमे प्रवेश करते है और वहाँ आग लग जाती है और वहा खड़े रहने वालों के कर्ण में प्रवेश करके और बढ़ जाती है | क्रोध आग है, हृदय घर है,पतंग है | कठोर वचन जहाँ जाकर गिरते है, वहीँ आग लग जाती है | क्रोध रुपी आग को बुझाने के लिए शान्ति जल है | चाहे कोई कैसा ही कहे, अपना भाव ठण्डा शीतल बनाना चाहिये | प्रभु की भक्ति,ध्यान, शरण लेने से शान्ति मिलती है | प्रभु ही बचा सकते है | उन्ही को पुकार लगानी चाहिये | जब आग लगती है तब भी हम पुकारते है | लोग आकर आग बुझाते है | जब क्रोध पैदा हो, तब प्रभु को याद करना चाहिये | मृत्यु को नजदीक  देखना चाहिये तथा समय को अमूल्य समझना चाहिये | अपना समय अमूल्य कार्य में ही बिताना चाहिये | उत्तम उपदेशो से आग को शान्त करना चाहिये,क्रोध उत्पन्न ही न हो, हो जाये तो शान्त कर देना चाहिये |    

यह नियम लेना चाहिये की आज से कठोर वचन और कलह नहीं करेंगे | इससे क्रोध भी नहीं आ सकता,प्रेम इसके लिए जल है | जल से पहले ही तृप्त हो जाये तो फिर क्रोध आयेही नहीं | यह नियम लेता जाये की हृदयसे क्रोध आये तो एक बार उपवास और बाहर से आये तो  दो बार उपवास करेंगे या यह नियम ले ले की बाहर आये तो उपवास और भीतर से आये तो शान्त करने के लिए पश्चाताप करना और सावधान करना चाहिये | पर यह प्रकट नहीं होना चाहिये कि आज क्रोध आने के कारण उपवास किया है, यदि प्रकट होने का भय हो तो उपवास दूसरे या तीसरे दिन कर ले |

स्त्रियों को पुरुषोंको जान कर नहीं देखना चाहिये, भूल से दृष्टि चली जाये तो दृष्टि हटा लेनी चाहिये |

शेष अगले ब्लॉग में ......  

श्री मन्न नारायण नारायण नारायण.. श्री मन्न नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....

ब्रहमलीन परमश्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका, साधन की आवश्यकता, कोड ११५०, गीताप्रेस, गोरखपुर
प्रवचन –तिथि प्रथम वैसाख शुक्ल ३,सम्वंत १९९१,रात्री स्वर्गाश्रम |