※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

पाप का मूल आसक्ति -4-

                                || श्री हरी ||
आज की शुभ तिथि – पंचांग
माघ कृष्ण,अष्टमी,सोमवार, वि० स० २०६९
February 04, 2013, Monday



सत्य वचन आधीनता, परतिय मातु सामान |

इतने में हरी न मिलें, तुलसीदास जमान ||

 तीन बातों की शरण से यदि कल्याण न हो तो तुलसीदास जी की गारन्टी है |

उत्तम के अस बस मन माहीं | सपनेहूँ आन पुरुष जग नाही ||

उत्तम के हृदय में पति ही बसता है | स्वप्न में भी दुसरे पुरुष की भावना ही नहीं होती |

मध्यम पर पति देखई कैसे | भ्राता पिता पुत्र निज जैसे ||

जिसकी दृष्टि पिता, भाई की तरह हो जाती है, समझकर लौटा लेती है | स्वाभाव से यदि दृष्टि चली जाये और एक क्षण भी ठहर जाए तो एक समय उपवास रखना चाहिये | यह नियम ले ले की अपने मुख से झूठे, असत्य, अश्लील शब्द नहीं कहेंगे | कठोर नहीं कहेंगे |झूठ या अश्लील बोला जाये तो एक समय का उपवास करेंगे | इन तीन बातो के लिए नियम ले ले | क्रोध आये या दृष्टिदोष हो या अश्लील बात कही जाये तो एक समय का उपवास करेंगे | प्रत्यक्ष मालूम हो सकता है की सुधार हुआ की नहीं | सबके लिए ही यह बात समझनी चाहिये | इस पुरुषोत्तम मॉस में एक महीने इस प्रकार करके देखो तो सही, इस प्रकार की चेष्टा करने पर क्रोधादि निकट ही नहीं आयेंगे | उपवास का भय लगेगा | इस प्रकार से वृतियाँ पवित्र होती है | असली सुधार वैराग्य से, राग के नाश से हो जाता है |     

विषयों का चिन्तन करने वाले पुरुषो की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है, आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पढने से क्रोध उत्पन्न होता है | क्रोध से अत्यन्त मूढ़ भाव उत्पन्न हो जाता है, मूढ़ भाव से स्मृति में भ्रम हो जाता है, स्मृति में भ्रम हो जाने से बुद्धि अर्थात ज्ञान शक्ति का नाश हो जाता है और बुद्धि का नाश हो जाने से यह पुरुष अपनी स्तिथी से गिर जाता है | (गीता २ | ६२-६३)     


शेष अगले ब्लॉग में ......  

श्री मन्न नारायण नारायण नारायण.. श्री मन्न नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....

ब्रहमलीन परमश्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका, साधन की आवश्यकता, कोड ११५०, गीताप्रेस, गोरखपुर

प्रवचन –तिथि प्रथम वैसाख शुक्ल ३,सम्वंत १९९१,रात्री स्वर्गाश्रम |