|| श्री हरि: ||
आज की शुभ
तिथि – पंचांग
माघ
कृष्ण,दशमी,मंगलवार, वि० स० २०६९
सारे
अनर्थो का मूल आसक्ति है | तीर्थ में स्नान करे तो यह भावना करे कि पाप नष्ट होते
है, विश्वास करे | उत्तम व्यवहार करना चाहिये | एक ही बात जिससे सारा व्यवहार,
बर्ताव सुधर जायेगा | उसको काम में ला सको तो उस एक से ही काम बन जायेगा | वह बात
है स्वार्थ को छोड़ कर सबकी सेवा करना, दुसरो की आत्मा को सुख पहुचाना | लोभ में ही
पाप है | लोभ के कारण से ही सब काम बिगड़ता है | लड़ाई भी इसी से होती है | इस लोभ
के त्याग से ही सब काम हो जायेगा | सोने,खाने, पीने सब में स्वार्थ ही विराजमान हो
रहा है | उस स्वार्थ को हाथ पकड़ कर निकल दो, फिर शान्ति,सरलता सब गुण आ जायेगें, नवीन जीवन संचार आ जायेगा |
आचरणों में सत्यभाषण हैं,सद्गुणों में त्याग है, बर्ताव में त्याग ही बर्ताव
सुधारने का उपाय है | संयम में भी त्याग ही प्रधान है और वही त्याग यदि विवेक,
वैराग्यपूर्ण हो तो फिर कहना ही क्या है | नारायण का नाम लेने से बुरे आचरणों का,
सब दुर्गुणों का नाश हो जाता है | परमेश्वर के नाम की स्मृति से सब दोष नष्ट हो
जाते है | माला तो फेरते ही है | उसका प्रभाव समझना चाहिये, एक बार के भी भगवान
नाम उच्चारण से सब पापो का नाश हो जाता है | यह लाभ प्रभाव जानने से से ही होता है
| इस प्रकार भावना, विश्वास करके नाम ले, भजन करे, विश्वास करे की में भजन करता
हूँ, इसलिये मेरे से बुरे कर्म हो ही नहीं सकते, इस प्रकार नित्य याद करे | आज से
ही यह नियम ले-ले की प्रभु के भजन करने से पाप नहीं आ सकते, नही आ सकते, यह विश्वास
कर लेना चाहिये | यदि आते है तो भजन ढोंग से, बड़ाई के लिए करते होंगे, अन्यथा तो
पाप नष्ट होने ही चाहिये | एक भगवान नाम उच्चारण से त्रिलोकी का राज्य भी नीचा है,
वह त्रिलोकी का राज्य भी झूठा है, भगवान नाम ही सत्य है | जो भगवान को उत्तम समझता
है, वः फिर उसी को भजता है |
हे
भारत ! जो ज्ञानी पुरुष मुझको इस प्रकार तत्व से पुरुषोतम जानता है, वह सर्वज्ञ पुरुष सब प्रकार से निरन्तर मुझ
वासुदेव परमेश्वर को ही भजता है | (गीता १५|१९)
भगवान
से बढ़कर उसकी समझ में कोई चीज ही नहीं तो फिर वह दूसरे को क्यों भजेगा ? पत्थर की,
ताम्बे की , लोहे की , सोने की , चांदी की खाने है तो हम कीमती चीज को ही उठाना
चाहेंगे | भगवान नाम के महत्व को समझने वाले के लिए भगवान के नाम से बढकर कोई चीज
नहीं रह जाती | भगवान नामका महत्व समझना चाहिये | फिर हमारे में अवगुण नही ठहर
सकते, दुर्व्यवहार नहीं हो सकता |
बसही
भगति मनी जेहि उर माहि |
खल कामादि निकट नही जाही |
इससे
यह सिद्ध होता है कि यदि हमारे में दुर्गुण है तो हमारे में भक्ति ही नहीं है |
इसलिए आज से निश्चय करना चाहिये की आज से दोष नहीं हो सकेगा | यदि दोष आता है तो
निश्चय में कमी है | भगवान नाम का जप, स्वरुप का चिन्तन, गुणों का गायन करने से
उसके नजदीक दोष आ ही नहीं सकते | इसलिए यथा शक्ति प्रयास करना चाहिये, यही
प्रार्थना है |
श्री
मन्न नारायण नारायण नारायण.. श्री मन्न नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....
ब्रहमलीन
परमश्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका, साधन की आवश्यकता, कोड ११५०, गीताप्रेस, गोरखपुर
प्रवचन –तिथि प्रथम वैसाख
शुक्ल ३,सम्वंत १९९१,रात्री स्वर्गाश्रम |