※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

मील और नील से हानि -1-



।। श्रीहरि: ।।
                                आज की शुभ तिथि पंचांग

                    माघ शुक्ल, पूर्णिमा, सोमवार, वि० स० २०६९

                                 

वर्तमान युग प्राय: यन्त्रयुग हो रहा है, जहाँ देखिये वहीं यन्त्र का साम्राज्य है । प्राय: बड़े-से-बड़े राष्ट्रों से लेकर मामूली खाने-पीने-पहिनने तक की वस्तु आज यन्त्र के आश्रित है । परन्तु इस यन्त्र से दुनिया में जो दुःख: का दावानल धधक उठा है, उसे देख-सुनकर हृदय काँप उठता है । यन्त्र प्रयत्क्ष और अप्रयत्क्षरूप से अबाधित गति से मानव-प्राणियों के सुख का सतत संहार कर रहा है । मानवेतर प्राणियों की तो यन्त्र को कोई परवा ही नहीं है । यह इस प्रकार का संहारक पदार्थ है कि जो मानव सहांरी असुरोंसे भी किसी अंश में बढ़ जाता है । आज संसार में चारों ओर पेट की ज्वाला से जलते हुए प्राणियों का हाहाकार मचा हुआ है, करोड़ो मनुष्य बेकार हो रहे हैं, असंख्य नर-नारी विविध रोगों से ग्रस्त है, कर्मशील मानव अकर्मण्य और आलसी बन गए हैं; इसका एक प्रधान कारण यह भयानक यन्त्रविस्तार है । यान्त्रिक सभ्यता का यदि इस प्रकार विस्तार होता रहा तो सम्भवत: एक समय ऐसा आवे, जब की सब प्रकार से धर्म-कर्म शून्य होकर मनुष्य ही मनुष्य का घातक बन जाय । प्रकांरान्तर से तो यह स्वरुप अब भी प्रत्यक्ष ही है ।

खेद का विषय है की ऋषि-मुनि-सेवित पवित्र भारत-भूमि में भी यन्त्रका विस्तार दिनोदिन बढ़ रहा है । पहले तो कपडे और पाट आदि की ही मीलें थी, जिनसे गरीबो का गृह-उद्योग,चर्खा आदि तो नष्ट ही हो गया था । अब छोटी बड़ी सब तरह की मीलें बन रही है, जिससे ग्राम-उद्योग का बचा-खुचा स्वरुप भी नष्ट हो रहा है । स्त्रियाँ धान कूटकर काम चलाती थी, अब चावलों की मीलें हो गयी है । गरीब विधवा बहने आटा पीसकर अपना और अपने बच्चो का पेट भरती थी, अब गावँ-गाँव में आटा पीसने वाली कलकी चक्किया बैठ गई है ।  तेलियों के कोलुहों को मीलों ने प्राय हड़प लिया है । चीनी का सबसे बड़ा गरीबो का रोज़गारतों मीलों के द्वारा बड़ी  ही बुरी तरह से मारा गया । अब कपडे धोने का काम भी मशीनों से शुरू हो गया है, जिससे बिचारे गरीब धोबियों की रोटी भी मारी जाने का सम्भावना हो गयी है । यह तो निश्चित है की सैकड़ों-हजारों आदमियों का काम जहाँ एक मील से होगा, वहाँ लोगों में बेकारी ही फैलती दृष्टि आती है । बेकारी में असह्य होकर, अपने और परिवार की पेट की ज्वाला से पीड़ित होकर, इच्छा न होने पर भी परिस्थिती में पड कर, मनुष्य को किस-किस प्रकारसे बुरे कर्म करने पड़ते हैं और कहीं कहीं तो परिवार-का-परिवार आसुओसे तन-बदन को धोता हुआ चुपचाप एक ही साथ जीवनलीला समाप्त कर लेता है । इस बात का पता बेकारों को तो प्राय: है ही, अखबार पढने वाले लोग भी ऐसी घटनाओसे अनजान नहीं है । ....शेष अगले ब्लॉग में          

    
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर


नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!