※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

मील और नील से हानि -2-

                                ॥ श्री हरि: ॥
                         आज की शुभ तिथि पंचांग
                     फाल्गुन कृष्ण, प्रतिपदा, मंगलवार, वि० स० २०६९
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साथ ही हाथ की बनी चीजों में जो जीवनीशक्ति, एक विशिष्ट सौन्दर्य, धर्म की पवित्र भावना रहती है, वैसी मील के बने पदार्थो में ढूडनेपर भी नहीं मिलती । प्राकृतिक और कृत्रिम में अथवा असली और नकली में जो भेद रहता है वही भेद प्राय: इनमे भी समझना चाहिये । आटे और चावल को ही लीजिये, जातें में हाथ से पिसे आटे और ढेकी से कुटे चावल में जो जीवनीशक्ति रहती है, बल और आरोग्यवर्धक तत्व रहता है, मील के पिसे आटे या मील के कूटे चावल में प्राय: वैसा नहीं रहता । घर फूँक कर रौशनी देखनेकी भाँती अवश्य ही उनकी कृत्रिम सौन्दर्य तो बढ़ ही जाता है । 
अभी बेरी-बेरी रोग के सम्बन्ध में जाँच पड़ताल होने पर, यह बात निश्चित हो चुकी है कि इस रोग के उत्पन्न और विस्तार होने में आटा, चावल  आदि मीलों के पिसे-कूटे पदार्थ ही विशेष कारणरूप हैं। यही हाल चीनी का है । जो जीवन तत्व ग्रामों के हाथ से बने गुड में है, उससे अनेको हिस्से कम हाथ की बनी चीनी में है और मील की बनी चीनी में कहा जाता है की जीवन तत्व (विटामिन) बहुत ही कम है । यही हाल तैल इत्यादि वस्तुओ का समझना चाहिये । चीनी की मीलों में सीरेकी, धानकलों में चावल के पानी की तथा मील के चावल से बने हुए भात की दुर्गन्ध से स्वास्थ्य की भयानक हानि होती है । ऐसी अवस्था में इन वस्तुओं के प्रचार से देश के स्वास्थ्य का कितना अधिक ह्रास होगा, इसपर विचार करने से भविष्य बहुत ही भयानक प्रतीत होता है ।   
मीलों के अधिक प्रचार से मशीनों की खरीदी में विदेश में जो धन जाता है उसकी संख्या भी थोड़ी नहीं है । साथ ही मीलों में काम करने वाले गरीब मजदूर भाई बहनों के स्वास्थ्य की और देखा जाय तो उसमे भी बड़ी हानि मालूम होती है । मीलों से किसानों को जो हानि हो रही है, वह भी हृदय हिला देने वाली है । मनुष्येतर प्राणियों का अर्थात छोटे-मोटे जीवों का, कीड़े-मकोड़े का जो संहार होता है, उसकी तो कोई संख्या ही नहीं है । 
....शेष अगले ब्लॉग में


       
श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!