|| श्री हरी ||
आज की शुभ तिथि – पंचांग
फाल्गुन कृष्ण, द्वितिया,बुधवार, वि० स० २०६९
गत
ब्लॉग से आगे..... दुःख है की आज मनुष्य ने अपने
स्वार्थ-साधन के लिए इतर प्राणियों के तो जीवन का मूल्य ही नहीं मान रखा है |
सम्भव है की विविध कला और विद्याओ में निष्णात भारतीय ऋषि-मुनि और विद्वानों ने यन्त्रों के
दुष्परिणामको जानकर ही उनका आविष्कार और प्रचार नहीं किया था | आज तो ऐसी दशा हो
गयी है की मिल के बने हुए पदार्थो का व्यवहार करना दूषित प्रतीत होने पर भी उसका
छोड़ना कठिन हो गया है | हमारे व्यापार में, हमारी आजीविका में साधन में और हमारी
घर-गृहस्थी में मिल् का इतना अधिक प्रवेश
हो गया है की दोष प्रतीत होने पर भी निकाल देना असम्भव नहीं तो बहुत ही कठिन है |
मेरा तो यहाँ पर यही निवेदन है की
मिलके दोषों को समझकर जहाँ तक बन पड़े हम लोगो को मिलों से कम सम्बन्ध रखना चाहिये
| वर्तमान परिस्थतीको देखते, न तो यह कहा जा सकता हैं की मिलों के संचालक सहसा सब
मिलों को बंद कर दे और न मिलों से सम्बंधित व्यापर छोड़ना और सम्पूर्ण रूप से घर की
मिलकी चीजो से रहित करना सम्भव है | शनै: शनै: यह काम करना चाहिये | जहाँ तक हो
सके मिलों से सम्बन्ध हटा कर, ग्राम-उद्योगों से सम्बन्ध जोड़ना, उनको पुन:जीवित
करना और उनका विस्तार करना प्रत्येक सहृदय देशवासी का अपने देश, जाति, धर्म और
स्वास्थ्य कलाभ के लिए अति आवश्यक कर्तव्य है |
खास
करके उन लोगो से निवेदन है की जो अपने व्यक्तिगत जीवन में और अपने घरों में मिलों
की बनी हुई वस्तुओं का व्यवहार करना अवश्यक समझते है या करते है | ये भाई-बहिन यदि
मिल की बनी वस्तुओ के बदले हाथ की बनी वस्तुओ का व्यवहार करना आरम्भ करना आरम्भ कर
दे- अवश्य ही ऐसा करने से उन्हें अपनी शौकिनि की वासना को और बाहरी सजावट के
प्रलोभन को कुछ कम करना होगा-तो सहज ही मिल का विस्तार कम हो सकता है और
ग्राम-उद्योग की श्रीवृद्धि होने के
फलस्वरूप गरीब भाई-बहनों की जीवन-रक्षा, देश के स्वास्थ्य की उन्नति, देश
के धन का सरक्षण, बेकारी का नाश, आलस्य और अकर्मण्यता का लोप और धर्म की वृद्धि हो
सकती है |....शेष
अगले ब्लॉग में
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से,
गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!!