※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

स्वार्थ रहित व्यवहार -2-


|| श्री हरि: ||

आज की शुभ तिथि – पंचांग

माघ शुक्ल, अष्टमी, सोमवार, वि० स० २०६९

                                     

गत ब्लॉग से आगे.....
परन्तु अपने अधीन किये हुए अंत:करण वाला साधक अपने वश में की हुई, राग-द्वेष से रहित इन्द्रियों द्वारा विषयों में विचरण करता हुआ अंत:करण की प्रसन्नता को प्राप्त होता है |

अंत:करण की प्रसन्नता होने पर साधक के सम्पूर्ण दुखो का आभाव हो जाता है और उस प्रसन्न चितवाले कर्मयोगी की बुद्धि शीघ्र ही सब और से हटकर एक परमात्मा में ही भलीभांती स्थिर हो जाती है |  (गीता २|६४-६५)

इसकी पहचान यही है की उसमे रागद्वेष नहीं होते और न उससे पाप ही होता है | वह सदा के लिए परमेश्वर में स्थित हो जाता है, भोजन राग-द्वेष छोड़कर करता है | ईश्वर केलिए चलता है, सोता है, दान देता है | जैसे एक आदमी बाढ़ में सेवा में गया तो उसका उद्देश्य केवल बाढ़ के लिए है | वह भी  इसी तरह भगवान की प्रसन्नता के लिए कार्य करता है | यदि भोजन नहीं करूँगा तो मर जाऊंगा, फिर भजन कैसे करूँगा | इसीके लिए, ईश्वर के दर्शन के लिए जीता है, शबरी की तरह ईश्वर के लिए जिनका जीना है, उनका सभी कार्य ईश्वर के लिए ही है | माता, बहने जो कार्य करती है, वह प्रभु के लिए करे | यह बात सबके लिए ही है | अपना लाभ सोच कर जो कार्य किया जाता है, वही पतन का कार्य है | यह सोचे की किसीको भी लाभ है, वह ईश्वर को लाभ है | ईश्वर का मार्ग बिलकुल उल्टा है | आज कोई गाली दे तो सुनकर दुःख होता है, प्रसशासे प्रसन्नता होती है, यह प्रवृति मार्ग है, बस इसका उल्टा ईश्वर का मार्ग है | अपने साथ में बुराई करे, उसके साथ भलाई करो | अपने पास की वस्तु को पहले दूसरो को दो | अच्छी चीज दूसरो को दो, बची हुई अपने लिए रखो |.....शेष अगले ब्लॉग में

  श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन की आवश्यकता पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!