|| श्री हरि: ||
आज की शुभ तिथि – पंचांग
गत
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यज्ञ से बचे हुए अन्न को खाने वाले श्रेस्ठ पुरुष सब पापो से मुक्त हो जाते है और जो पापीलोग अपना शरीर पोषण करने के लिए ही अन्न पकाते हैं, तो वे पाप को ही खाते है | (गीता ३|१३)
यज्ञ से बचे हुए अन्न को खाने वाले श्रेस्ठ पुरुष सब पापो से मुक्त हो जाते है और जो पापीलोग अपना शरीर पोषण करने के लिए ही अन्न पकाते हैं, तो वे पाप को ही खाते है | (गीता ३|१३)
ईश्वरकी
सेवा के लिये ही भोजन बनाओ | वृद्धो को, अतिथि, बालकों को देकर ही भोजन करो, बची हुई अमृत और बचाई हुई विष है | अलग रखकर पति को भोजन
कराये और घटिया सामग्री अतिथि को दे तो पति को ऐसा भोजन करना विष है | बचाई हुई चीज विष के सामान है, बची हुई अमृत के समान है,
ऐसी ही वस्तुओ, सब बातों में यही बात है | अच्छी चीज लेने की इच्छा ही नरक में ले
जाने वाली है | सबको सोचना चाहिये | जो आम मेरे लिए ख़राब है सबके लिए ख़राब है |
नौकरों को देनेके लिए भी ख़राब है | अच्छे पदार्थ दूसरों के लिए, बचे हुए अपने लिए
है | जो पदार्थ ख़राब हो गए, वे तो फेकने योग्य है | ऐसे व्यवहार से घर में रहने वाली सब स्त्रियाँ और ईश्वर की
भी आँख खुलेंगी की यह तो उत्तम स्त्री है | ईश्वर और देवताओं की बात तो अलग
हैं, नरक के प्राणी भी नरक में बुरी स्त्री को नहीं रखना चाहते, उसके लिए कही ठौर
नहीं है | जिससे सुख मिलता है, उससे प्रेम करते है | बुरे आदमी को कोई भी रखने को तैयार नहीं | हमको ऐसी योग्यता प्राप्त करनी चाहिये कि हम जहाँ जाये वहीँ आने की पुकार हो | देवता भी उसको बुलाना चाहते है | केवल इतना ही करना है की वर्तमान
में जो व्यवहार कर रही हो, उसे उलट दो तो वहाँ लिखे हुए ख़त भी उलटे कर दिए जायेंगे,
यानी प्रारब्ध सुधर जायेगा, फिर आपका बेडा पार है | नीयत ही अच्छी होनी चाहिये, नीयत यदि बुरी है
तो अच्छे कर्म भी आपके लिए ख़राब है | लाक्षाभवन में जलाने के लिए राजा युधिष्ठिर को
दान देने के बहाने बारनावत भेजा था पर नियत ठीक नहीं थी | वह नीयत उनके लिए ही
ख़राब हुई | जो कोई दूसरे का हित करता है, वह अपना ही हित करता है | जो दुसरे का
अपकार करता है, वह अपना ही नुकसान करता है | घर में लड़ाई हो, कोई गाली दे, तो बदले में गाली न दे, यह
उत्तम मार्ग है | जिस दिन नीयत बदल जाएगी, प्रारब्ध भी बदल जायेगा | उसी दिन भगवान तैयार है |
…......शेष अगले ब्लॉग में
…......शेष अगले ब्लॉग में
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन की आवश्यकता पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!