|| श्री हरी ||
आज की शुभ तिथि – पंचांग
माघ शुक्ल, दशमी, बुधवार, वि० स० २०६९
गत ब्लॉग
से आगे.....विलम्ब इसलिये है क्योकि नीयत अच्छी नहीं है | यदि
भगवान को चाहते है तो फिर कर्म भी वैसा ही होना चाहिये | यह कार्य करना बहुत सरल
है | कहावत है की कौड़ियों में हाथी मिल रहा है | यहाँ तो कौड़ियों की भी जरुरत नहीं
है, वह ईश्वर हाथी से भी महान है | यह नियम कर ले की घर में कोई गाली दे तो उससे लड़ाई नहीं करुँगी, न रुठुंगी
और न प्रतिकार करुँगी, उसको सह लूंगी, यदि यह नियम लिया जाये तो नए पाप नहीं बढ़
सकते | रहे पुराने पाप, उनके लिए स्वार्थ तो त्यागकर दूसरों की सेवा करनी
चाहिये तथा उदारता के साथ सबकी सेवा करके प्रसन्न होना चाहिये | भगवान ही आ गए है,
इस भाव से रसोई बनती है, उसका कल्याण हो जाता है | वह मानती है की आज मेरा अहोभाग्य है | अतिथि रूप में भगवान आये है | ऐसा भाव रखने वाले के यहाँ
कभी-न-कभी प्रभु अतिथिरूप में आ जाते है | संसार में सभी जीते है | एक रोज
मरना है ही और कोई पदार्थ मरने के साथ नहीं जायेगा, इसलिए इन सब पदार्थो को भगवान
के लिए ही खर्च कर देना चाहिये | भगवान के मिलने के लिए विशेष तैयारी की आवश्यकता
नहीं है | एक अच्छे पुरुष के लिए भी कितनी तैयारी करते है | प्रभु तो प्रेम की तैयारी से ही आ जाते है | प्रेम होना चाहिये |
जो
कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र,पुष्प,फल,जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि
निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुणरूप
से प्रगट होकर प्रीतिसहित खाता हूँ | (गीता ९|२६)
जिससे हमारी भेट हो उसी को भोजन कराये तो फिर उससे परमात्मा मिलते है |….....शेष
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—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन की आवश्यकता पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!