※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

स्वार्थ रहित व्यवहार -4-


|| श्री हरी ||

आज की शुभ तिथि – पंचांग

माघ शुक्ल, दशमी, बुधवार, वि० स० २०६९

 
 गत ब्लॉग से आगे.....विलम्ब इसलिये है क्योकि नीयत अच्छी नहीं है | यदि भगवान को चाहते है तो फिर कर्म भी वैसा ही होना चाहिये | यह कार्य करना बहुत सरल है | कहावत है की कौड़ियों में हाथी मिल रहा है | यहाँ तो कौड़ियों की भी जरुरत नहीं है, वह ईश्वर हाथी से भी महान है | यह नियम कर ले की घर में कोई गाली दे तो उससे लड़ाई नहीं करुँगी, न रुठुंगी और न प्रतिकार करुँगी, उसको सह लूंगी, यदि यह नियम लिया जाये तो नए पाप नहीं बढ़ सकते | रहे पुराने पाप, उनके लिए स्वार्थ तो त्यागकर दूसरों की सेवा करनी चाहिये तथा उदारता के साथ सबकी सेवा करके प्रसन्न होना चाहिये | भगवान ही आ गए है, इस भाव से रसोई बनती है, उसका कल्याण हो जाता है | वह  मानती है की आज मेरा अहोभाग्य है | अतिथि रूप में भगवान आये है | ऐसा भाव रखने वाले के यहाँ कभी-न-कभी प्रभु अतिथिरूप में आ जाते है | संसार में सभी जीते है | एक रोज मरना है ही और कोई पदार्थ मरने के साथ नहीं जायेगा, इसलिए इन सब पदार्थो को भगवान के लिए ही खर्च कर देना चाहिये | भगवान के मिलने के लिए विशेष तैयारी की आवश्यकता नहीं है | एक अच्छे पुरुष के लिए भी कितनी तैयारी करते है | प्रभु तो प्रेम की तैयारी से ही आ जाते है | प्रेम होना चाहिये |

जो कोई भक्त मेरे लिए प्रेम से पत्र,पुष्प,फल,जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुणरूप से प्रगट होकर प्रीतिसहित खाता हूँ | (गीता ९|२६)

जिससे हमारी भेट हो उसी को भोजन कराये तो फिर उससे परमात्मा मिलते है |.....शेष अगले ब्लॉग में

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन की आवश्यकता पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!