|| श्री हरी ||
आज की शुभ तिथि – पंचांग
माघ शुक्ल, एकादशी, गुरूवार, वि० स० २०६९
गत
ब्लॉग से आगे.....एक बार बनवास में पाण्डव जल के अभाव में व्याकुल हो
गए | महाराज युधिस्टर ने क्रमश: चारो भाईओ को जल लाने के लिए भेजा | सरोवर पर एक
यक्ष था | उसने उनसे प्रश्न किया किन्तु उन लोगो ने उसकी अवहेलना
करके जल लेने का प्रयास किया एवं यक्ष की माया से मृत हो गए | अन्त में भाइयों के
न लौटने पर महाराज युधिस्टर सरोवर पर गए एवं यक्ष के प्रश्नों का उत्तर देकर उसे
संतुस्ट किया | यक्ष ने प्रसन्न होकर महाराज से कहा की मैं आपके उत्तर से संतुस्ट
हूँ और आपके एक भाई को जीवित कर सकता हूँ | युधिस्टर जी ने कहा की यदि आप एक को ही
जीवित करना चाहते है तो नकुल को जीवित कर दे | यक्ष ने कहा भीम और अर्जुन जिनकी
सहायता से तुम दुर्योधन को जीत सकते हो, उन्हें छोड़ कर तुम नकुल को क्यों जीवित
करना चाहते है ? मैं तुम्हे सावधान करके
पुन: विचार करने का अवसर देता हूँ | युधिस्टर ने कहा मैं माता कुन्ती का पुत्र हूँ, नकुल के जीवित
रहने से मेरी माता माद्री की सन्तति भी कायम रहेगी, अत: आप नकुल को जीवित कर दे |
यक्ष उनके भाव को देख कर
प्रसन्न हो गया और चारों भाइयोंको जीवित कर दिया |
माताओं से यही कहना है की ऐसा व्यवहार करना चाहिये | कुन्ती देवी ने कितना
उपकार किया, ब्राह्मण परिवार की रक्षा के लिये अपने लड़के भीम को राक्षस के सामने
मरने के लियें भेज दिया | सोचना चाहिये, आज हमारे यहाँ कोई प्लेग की बीमारी आ
जाती
है तो वहाँ कोई सोना भी नहीं चाहता | कुन्ती जैसी स्त्री और माता कोई ही होगी
जो ऐसे काम के लिए उत्साह दिलाये
| सम्पति में तो सभी शामिल हो जाते हैं | विपत्ति
में शामिल होने में ही विशेषता है |आपति में शामिल
होनेवाले को ही भगवान याद
करते है | माताओं को देवी कुन्ती का और हम लोगो
को महाराज युधिस्टर का अनुकरण
करना चाहिये |…|.....शेष
अगले ब्लॉग में
—श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, साधन की आवश्यकता पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!