|| श्री हरि: ||
आज की शुभ
तिथि – पंचांग
स्वप्न में जो
संसार दीखता है, आँखे खोलने से जागने पर वह नहीं दीखता | इसी तरह यह विश्वास कर ले
की मैं स्वप्न में हूँ, मुझे जो कुछ भी प्रतीत हो रहा है वह सब स्वप्न है | जब
स्वप्न समाप्त हो जायेगा तब अपने-आप ही असली सत्य वस्तु दीखने लगेगी | यह विश्वास
कर ले की जो दीखती है वह सच्ची वस्तु नहीं है, यह स्वप्नवत है | जो भासती है वह है
नहीं | स्वप्न मिटने वाला जरुर है | आँख खुलते ही मिट जायेगा | इस पर यदि यह कहा
जाये की आजतक आँख क्यों नहीं खुली ? तो इसका उत्तर यह है की आज तक संसार के स्वप्नवत होने का निश्चय ही कब किया था ? आत्मा
का संकल्प सत्य है | इसलिए यह निश्चय करो की संसार स्वप्न है | चाहे वह सत्य ही
क्यों न दिखाई दे, उसे स्वप्नवत मानते रहो | मानते-मानते एक दिन स्वप्न का नाश हो
जायेगा और सत्य वस्तु प्राप्त हो जाएगी |
सबको प्राण ही सबसे बढकर प्यारे है | प्राण के समान प्यारा
कुछ भी नहीं है, प्रिय-से-प्रिय वस्तु तो याद रहेगी ही | इसलिए प्राणों में
ब्रह्म की भावना करे | आने-जाने वाले श्वास की तरफ लक्ष्य रखे | श्वास तो
अन्ततक आता ही है | इसी तरह यह अभ्यास किया जायेगा तो अंत समय में उद्धार हो
जायेगा | प्राण को ब्रह्म मान ले ! उसमे होनेवाले शब्द को ब्रह्म का नाम मान ले;
क्योकि प्राणों से ‘सोअहं सोअहं’ शब्द का उच्चारण होता रहता हैं |
यह भी परमात्मा का नाम है | इसलिए प्राण ही ब्रह्म है ऐसा निश्चय करने से परमात्मा
की प्राप्ति हो जाती है | अब जिसको जो उपाय सुगम एवं प्यारा मालूम हो उसी का साधन
करे |
इस प्रकार कल्याण की प्राप्ति के और भी सैकड़ो उपाय है,
परन्तु कुछ-न-कुछ तो करना ही होगा | साधन किये बिना कल्याण नहीं हो सकता | वे सब
साधन गीता, वेद तथा श्रुति में बतलाये गए है | श्रेयार्थियो को इनमेसे कोई-सा भी
एक साधन, जो उन्हें पसन्द हो करना चाहिये |
नारायण
नारायण नारायण..नारायण नारायण नारायण... नारायण नारायण नारायण....
ब्रह्मलीन परमश्रद्धेय श्रीजयदयालजी गोयन्दका, भगवत्प्राप्ति
के विविध उपाय, कोड ३०९, गोरखपुर