|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन कृष्ण अष्टमी, मंगलवार, वि०स० २०६९
*शिव-तत्त्व*
गत
ब्लॉग से आगे.......इसी प्रकार भगवती महाशक्ति की
स्तुति करते हुए देवगण कहते हैं—
सृष्टिस्थितिविनाशानां
शक्तिभूते सनातनि |
गुणाश्रये
गुणमयि नारायणि नमोऽस्तु ते ||
(मार्कंडेय० ९१ | १०)
‘ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप से सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और
विनाश करनेवाली हे सनातनी शक्ति ! हे गुणाश्रये ! हे गुणमयी नारायणी देवी !
तुम्हें नमस्कार हो |’
स्वयं
भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं—
त्वमेव सर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी |
त्वमेवाद्या
सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका ||
कार्यार्थे
सगुणा त्वं च
वस्तुतो निर्गुणा स्वयं |
परब्रह्मस्वरूपा त्वं
सत्या नित्या सनातनी ||
तेजस्स्वरूपा परमा
भक्तानुग्रहविग्रहा |
सर्वस्वरूपा सर्वेशा
सर्वाधारा परात्परा ||
सर्वबीजस्वरूपा च
सर्वपूज्या निराश्रया |
सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमंगलमंगला ||
(ब्रह्मवै० प्रकृति० २ | ६६ |
७—११)
‘तुम्हीं विश्वजननी, मूल-प्रकृति ईश्वरी हो, तुम्हीं सृष्टि की उत्पत्ति
के समय आद्याशक्ति के रूप में विराजमान रहती हो और स्वेच्छा से त्रिगुणात्मिका बन
जाती हो | यद्यपि वस्तुतः तुम स्वयं निर्गुण हो तथापि प्रयोजनवश सगुण हो जाती हो |
तुम परब्रह्म-स्वरुप, सत्य, नित्य एवं सनातनी हो; परमतेज:स्वरुप और भक्तोंपर
अनुग्रह करने के हेतु शरीर धारण करनेवाली हो; तुम सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी,
सर्वाधार एवं परात्पर हो | तुम सर्वबीज-स्वरुप, सर्वपूज्या एवं आश्रयरहित हो | तुम
सर्वज्ञ, सर्वप्रकार से मंगल करनेवाली एवं सर्वमंगलों का भी मंगल हो |’
ऊपर के उद्धरण से महाशक्ति का विज्ञानानन्दघन
स्वरुप के साथ ही सर्वव्यापी सगुण ब्रह्म एवं सृष्टि की उत्पत्ति, पालन और विनाश
के लिए ब्रह्मा, विष्णु और शिव के रूप में होना सिद्ध है |
इसी प्रकार ब्रह्माजी के बारे में कहा गया है—
जय देवाधिदेवाय
त्रिगुणाय सुमेधसे |
अव्यक्तजन्मरूपाय कारणाय महात्मने ||
एतत्त्रिभावभावाय
उत्पत्तिस्थितिकारक |
रजोगुणगुणाविष्ट सृजसीदं
चराचरम् ||
सत्त्वपाल
महाभाग तमः संहरसेऽखिलम् |
(देवीपुराण ८३ | १३—१६)
‘आपकी जय हो | उत्तम बुद्धिवाले, अव्यक्त-व्यक्तरूप त्रिगुणमय, सबके
कारण, विश्व की उत्पत्ति, पालन एवं संहारकारक ब्रह्मा, विष्णु और महेशरूप तीनों
भावों से भावित होनेवाले महात्मा देवाधिदेव ब्रह्मदेव के लिए नमस्कार है | हे
महाभाग ! आप रजोगुण से आविष्ट होकर हिरण्यगर्भरूप से चराचर संसार को उत्पन्न करते
हैं तथा सत्त्वगुणयुक्त होकर विष्णुरूप से पालन करते हैं एवं तमोमूर्ति धारण करके
रुद्ररूप से सम्पूर्ण संसार का संहार करते हैं |’
उपर्युक्त
वचनों से ब्रह्माजी के भी परात्पर ब्रह्मसहित पाँचों रूपों का होना सिद्ध होता है
| अशक्त से तो परात्पर परब्रह्म-स्वरुप एवं कारण से सर्वव्यापी, निराकार सगुणरूप
तथा उत्पत्ति, पालन और संहारकारक होनेसे ब्रह्मा, विष्णु, महेशरूप होना सिद्ध होता
है |
इसी तरह भगवान् श्रीराम के प्रति भगवान् शिव
के वाक्य हैं—
एकस्त्वं
पुरुषः साक्षात् प्रकृतेः पर ईर्यसे |
यः स्वांशकलया
विश्वं सृजत्यवति हन्ति च ||
अरूपस्त्वमशेषस्य जगतः
कारणं परम् |
एक एव
त्रिधा रूप गृह्णासि कुहकान्वितः ||
सृष्टौ विधातृरुपस्तवं पालने
स्वप्रभामयः |
प्रलये जगतः
साक्षादहं शर्वाख्यतां गतः ||
(पद्म० पाता० ४६ |
६—८)
‘आप प्रकृति से
अतीत साक्षात् अद्वितीय पुरुष कहे जाते हैं, जो अपनी अंशकला के द्वारा ब्रह्मा,
विष्णु, रुद्ररूप से विश्व की उत्पत्ति, पालन एवं संहार करते हैं | आप अरूप होते
हुए भी अखिल विश्व के परम कारण हैं | आप एक होते हुए भी माया-संवलित होकर त्रिविध
रूप धारण करते हैं | संसार की सृष्टि के समय आप ब्रह्मा रूप से प्रकट होते हैं,
पालन के समय स्वप्रभामय विष्णुरूप से व्यक्त होते हैं, प्रलय के समय मुझ शर्व
(रूद्र) का रूप धारण कर लेते हैं |’.........शेष
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—श्रद्धेय जयदयाल
गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!