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श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन शुक्ल २, बुधवार, वि०स० २०६९
*धर्म की आवश्यकता*
गत
ब्लॉग से आगे.......अतएव अभी से धर्मभीरु जनता को
सावधानी के साथ धर्म की रक्षा के लिए कटिबद्ध हो जाना चाहिए | धार्मिक साहित्य का
प्रचार, धर्म के निर्मल भावों का विस्तार, धर्म के सूक्ष्म तत्त्वों का अन्वेषण और
प्रसार करने के लिए प्रस्तुत हो जाना चाहिए | साथ ही धर्म का वास्तविक आचरण करके
ऐसा चरित्रगत धर्मबल संग्रह करना चाहिए जिससे धर्मविरोधी हलचल में ठोस बाधा
पहुँचायी जा सके | सनातन-धर्म किसी दूसरे धर्म का विरोध नहीं करता | महाभारत
में कहा है—
धर्मं यो बाधते धर्मो न स
धर्मः कुधर्मकः |
अविरोधात्तु यो धर्मः स धर्मः सत्यविक्रम ||
हे सत्यविक्रम ! जो धर्म दूसरे धर्म का विरोध करता है वह तो कुधर्म है
| जो दूसरे का विरोध नहीं करता, वही यथार्थ धर्म है | पता
नहीं, ऐसे सार्वभौम धर्म के त्याग का प्रश्न ही कैसे उठता है ? मनु महाराज के ये
वाक्य स्मरण रखने चाहिए कि—
नामुत्र हि सहायार्थं पिता माता च तिष्ठतः |
न पुत्रदारा न ज्ञातिर्धर्मस्तिष्ठति
केवलः || २३९ ||
मृतं शरीरमुत्सृज्य काष्ठलोष्ठसमं
क्षितौ |
विमुखा बान्धवा
यान्ति धर्मस्तमनुगच्छति || २४१ ||
तस्माद्धर्मं सहायार्थं नित्यं सञ्चिनुयाच्छनैः |
धर्मेण हि सहायेन तमस्तरति
दुस्तरम्
|| २४२ ||
(मनुस्मृति
अ० ४)
परलोक में सहायता के लिए माता, पिता, पुत्र, स्त्री और सम्बन्धी नहीं
रहते | वहाँ एक धर्म ही काम आता है | मरे हुए शरीर को बन्धु-बांधव काठ और मिट्टी
के ढेले के समान पृथिवी पर पटककर घर चले आते हैं, एक धर्म ही उसके पीछे जाता है |
अतएव परलोक में सहायता के लिए नित्य शनैः-शनैः धर्मका संचय करना चाहिए | धर्म की
सहायता से मनुष्य दुस्तर नरक से भी तर जाता है |