※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 13 मार्च 2013

धर्म की आवश्यकता



   || श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन शुक्ल २, बुधवार, वि०स० २०६९
*धर्म की आवश्यकता*
गत ब्लॉग से आगे.......अतएव अभी से धर्मभीरु जनता को सावधानी के साथ धर्म की रक्षा के लिए कटिबद्ध हो जाना चाहिए | धार्मिक साहित्य का प्रचार, धर्म के निर्मल भावों का विस्तार, धर्म के सूक्ष्म तत्त्वों का अन्वेषण और प्रसार करने के लिए प्रस्तुत हो जाना चाहिए | साथ ही धर्म का वास्तविक आचरण करके ऐसा चरित्रगत धर्मबल संग्रह करना चाहिए जिससे धर्मविरोधी हलचल में ठोस बाधा पहुँचायी जा सके | सनातन-धर्म किसी दूसरे धर्म का विरोध नहीं करता | महाभारत में कहा है—
धर्मं यो बाधते धर्मो न  स धर्मः  कुधर्मकः |
अविरोधात्तु यो धर्मः स धर्मः सत्यविक्रम ||
हे सत्यविक्रम ! जो धर्म दूसरे धर्म का विरोध करता है वह तो कुधर्म है | जो दूसरे का विरोध नहीं करता, वही यथार्थ धर्म है | पता नहीं, ऐसे सार्वभौम धर्म के त्याग का प्रश्न ही कैसे उठता है ? मनु महाराज के ये वाक्य स्मरण रखने चाहिए कि—
नामुत्र हि सहायार्थं पिता माता च तिष्ठतः |
            न पुत्रदारा    ज्ञातिर्धर्मस्तिष्ठति  केवलः || २३९ ||
मृतं   शरीरमुत्सृज्य   काष्ठलोष्ठसमं  क्षितौ |
           विमुखा बान्धवा यान्ति धर्मस्तमनुगच्छति || २४१ ||
तस्माद्धर्मं सहायार्थं नित्यं  सञ्चिनुयाच्छनैः |
          धर्मेण  हि   सहायेन  तमस्तरति   दुस्तरम् || २४२ ||
(मनुस्मृति अ० ४)
परलोक में सहायता के लिए माता, पिता, पुत्र, स्त्री और सम्बन्धी नहीं रहते | वहाँ एक धर्म ही काम आता है | मरे हुए शरीर को बन्धु-बांधव काठ और मिट्टी के ढेले के समान पृथिवी पर पटककर घर चले आते हैं, एक धर्म ही उसके पीछे जाता है | अतएव परलोक में सहायता के लिए नित्य शनैः-शनैः धर्मका संचय करना चाहिए | धर्म की सहायता से मनुष्य दुस्तर नरक से भी तर जाता है |