※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

शुक्रवार, 15 मार्च 2013

घर-घर में भगवान् की पूजा



|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन शुक्ल चतुर्थी, शुक्रवार, वि०स० २०६९
*घर-घर में भगवान् की पूजा*
गत ब्लॉग से आगे....... भगवान् के अनेक मंदिर हैं, मंदिरों में जाना बड़ा उत्तम है परन्तु एक तो सभी स्थानों में मंदिर मिलते नहीं | दूसरे सभी जाकर अपनी इच्छा के अनुसार अपने हाथों सेवा-पूजा नहीं कर सकते | तीसरे सब मंदिरों की व्यवस्था आजकल प्रायः ठीक नहीं रहती | चौथे घर की सब स्त्री-पुरुष, मंदिरों में नियमितरुप से जा भी नहीं सकते | परन्तु घर में किसी धातु की, पाषाण की भगवान् की कोई मूर्ति या चित्र सभी रख सकते हैं और उसकी पूजा अपने-अपने मत के अनुसार या प्रेमभक्ति-प्रकाश में बतलाई हुई विधि के अनुसार स्त्री-पुरुष सभी कर सकते हैं | घर में नित्य भगवान् की पूजा होने से उसके लिए पूजा की सामग्री जुटाने, पुष्प की माला गूंथने आदि में बहुत-सा समय एक तरह से भगवत-चिंतन में लग जाता है | बालकों को भी इसमें बड़ा आनन्द मिलता है, वे भी इसको सिख जाते हैं | लड़कपन से ही उनके हृदय में भगवत्सम्बन्धी संस्कार जमने लगते हैं | व्यर्थ के खेल-कूद की बात भूलकर उनका चित्त इसी सत्कार्य में प्रमुदित होने लगता है | छोटी उम्र के संस्कार आगे चलकर बड़ा काम देते हैं | भक्तिमती मीराबाई आदि में इस लड़कपन के मूर्तिपूजा के संस्कार से ही बड़ी उम्र में भक्ति का विकास हुआ था | जिन लोगों ने अपने घरों में इस कार्यका आरम्भ कर दिया है उनकी भगवान् में श्रद्धा, भक्ति और प्रेम उत्तरोत्तर बढ़ रहा है |

    अतएव मैं सब भाइयों से, वेद, शास्त्र और पुराणादि न माननेवाले भाइयों से भी विनीत-भाव से यह प्रार्थना करता हूँ कि यदि वे समझे तो अपने-अपने घरों में इस काम को तुरंत आरम्भ कर दें | भगवान् की पूजा के साथ ही घर के सब पुरुष, स्त्रियाँ और बालक मिलकर भगवान् का नाम लें | भगवान् की पूजा चाहे एक ही व्यक्ति करे पर पूजा का अधिकार सबको हो | स्वामी न हो तो स्त्री पूजा कर ले, स्त्री न कर सके तो पुरुष कर ले | सारांश यह है कि भगवत-पूजन में नित्य कुछ-कुछ समय अवश्य लगता रहे | इससे घरभर में श्रद्धा-भक्ति का विकास हो सकता है | जो लोग कर सकें वे बाह्य पूजा के साथ ही अपने-अपने सिद्धान्त के अनुसार या ‘प्रेमभक्ति-प्रकाश’* के अनुसार भगवान् की मानसिक पूजा भी करें क्योंकि आन्तरिक पूजा का महत्त्व और भी अधिक है | एकबार मेरी इस प्रार्थनापर ध्यान देकर इस पूजन–भक्ति का आरम्भ कर इसका फल तो देखें ! इससे अधिक विश्वास दिलाने का मेरे पास और कोई साधन नहीं है |
श्रद्धेय जयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!
*’प्रेमभक्ति-प्रकाश’ पुस्तक गीताप्रेस, गोरखपुर से मिल सकती है |