|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन शुक्ल
चतुर्थी, शुक्रवार, वि०स० २०६९
*घर-घर में भगवान् की पूजा*

अतएव मैं सब भाइयों से, वेद, शास्त्र और पुराणादि न माननेवाले भाइयों से भी
विनीत-भाव से यह प्रार्थना करता हूँ कि यदि वे समझे तो अपने-अपने घरों में इस काम
को तुरंत आरम्भ कर दें | भगवान् की पूजा के साथ ही घर के सब पुरुष, स्त्रियाँ और
बालक मिलकर भगवान् का नाम लें | भगवान् की पूजा चाहे एक ही व्यक्ति करे पर पूजा का
अधिकार सबको हो | स्वामी न हो तो स्त्री पूजा कर ले, स्त्री न कर सके तो पुरुष कर
ले | सारांश यह है कि भगवत-पूजन में नित्य कुछ-कुछ समय अवश्य लगता रहे | इससे घरभर
में श्रद्धा-भक्ति का विकास हो सकता है | जो लोग कर सकें वे बाह्य पूजा के साथ ही
अपने-अपने सिद्धान्त के अनुसार या ‘प्रेमभक्ति-प्रकाश’* के अनुसार भगवान् की मानसिक पूजा भी करें क्योंकि आन्तरिक पूजा का
महत्त्व और भी अधिक है | एकबार मेरी इस प्रार्थनापर ध्यान देकर इस पूजन–भक्ति
का आरम्भ कर इसका फल तो देखें ! इससे अधिक विश्वास दिलाने का मेरे पास और कोई साधन
नहीं है |
—श्रद्धेय जयदयाल
गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
नारायण !!! नारायण !!!
*’प्रेमभक्ति-प्रकाश’
पुस्तक गीताप्रेस, गोरखपुर से मिल सकती है |