※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 20 मार्च 2013

धर्म और उसका प्रचार



    || श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी,बुधवार, वि०स० २०६९
*धर्म और उसका प्रचार*
गत ब्लॉग से आगे.......अतः जिन पुरुषों को धर्म के विस्तृत ग्रन्थों को देखने का पूरा समय नहीं मिलता है उनको चाहिए कि वे गीता का अर्थसहित अध्ययन अवश्य ही करें और उसके उपदेशों को पालन करने में तत्पर हो जायँ | मुक्ति में मनुष्यमात्र का अधिकार है और गीता मुक्ति-मार्ग बतलानेवाला एक प्रधान ग्रन्थ है, इसलिए परमेश्वर में भक्ति और श्रद्धा रखनेवाले सभी आस्तिक मनुष्यों का इसमें अधिकार है | गीता-प्रचार के लिए भगवान् ने किसी देश, काल, जाति और व्यक्तिविशेष के लिए रूकावट नहीं की है, वरन अपने भक्तों में गीता का प्रचार करनेवाले को सबसे बढ़कर अपना प्रेमी बतलाया है |
य इमं  परमं  गुह्यं  मद्भक्तेष्वभिधास्यति |
भक्तिं मयि परां कृत्वा मामेवैष्यत्यसंशयः ||
(१८ | ६८)
    ‘जो पुरुष मेरे में परम प्रेम करके इस परम रहस्ययुक्त गीताशास्त्र को मेरे भक्तों में कहेगा, अर्थात् निष्कामभाव से प्रेमपूर्वक मेरे भक्तों को पधावेगा या अर्थ की व्याख्या द्वारा इसका प्रचार करेगा, वह निःसंदेह मेरे को ही प्राप्त होगा |’
न च तस्मान्मनुष्येषु  कश्चिन्मे प्रियकृत्तमः |
भविता न च मे तस्मादन्यः प्रियतरो भुवि ||
(१८ | ६९)
‘और न तो उससे बढ़कर मेरा अतिशय प्रियकार्य करनेवाला मनुष्यों में कोई है और न उससे बढ़कर मेरा अत्यन्त प्यारा पृथ्वी में दूसरा कोई होवेगा |’
    अतएव सभी देशों की सभी जातियों में गीताशास्त्र का प्रचार बड़े जोर के साथ करना चाहिए | केवल एक गीता के प्रचार से ही पृथ्वी के मनुष्यमात्र का उद्धार हो सकता है | इसलिए इसी गीता-धर्म के प्रचार में सबकों यत्नवान होना चाहिए | इससे सबको आत्यन्तिक सुख की प्राप्ति हो सकती है | यही एक सरल, सहज और मुख्य उपाय है |

श्रद्धेय जयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!