※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

गुरुवार, 21 मार्च 2013

भगवान् में प्रेम होने के उपाय



|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
फाल्गुन शुक्ल नवमी,गुरुवार, वि०स० २०६९

*भगवान् में प्रेम होने के उपाय*
   
    भगवान् के चरणों में प्रेम होने का मुख्य उपाय प्रेम होने की इच्छा ही है | जो यह चाहता है कि मेरा भगवान् के चरणों में अनन्य प्रेम हो जाय उसका हो जायगा | लोग कहते तो हैं, परन्तु वास्तव में नहीं चाहते | इसका पता उनकी क्रिया से लगता है | धन को चाहनेवाले रात-दिन रुपया-रुपया करते फिरते हैं, रुपयों के लिए मारे-मारे फिरते हैं | उनकी क्रिया और प्रयत्न यह सिद्ध कर देता है कि उनका रुपयों में प्रेम है | इसी प्रकार हमलोगों की प्रयत्न की शिथिलता यह बतलाती है कि हम भगवान् में प्रेम कहाँ चाहते हैं | भगवान् में प्रेम होने के कुछ उपाय इस प्रकार हैं—
(१) दृढ़ प्रयत्न करना |
(२) जिन पुरुषों का भगवान् में प्रेम है, उनका संग करना, उनकी आज्ञानुकुल चलना और उनका अनुकरण करना |
(३) एकांत में भगवान् से गद्गदवाणी से, करुणाभाव से रुदन करते हुए प्रभु से प्रार्थना की जाय | प्रभु के शरण होकर भगवान् में प्रेम हो सकता है | यह भी बहुत अच्छा उपाय है |
(४) भगवान् के नाम का निरन्तर जप करने से भी प्रेम होता है | भगवान् का भजन करने से प्रेम होता है | यह विश्वास करना बड़ा अच्छा उपाय है |
     चारों उपायों न से एक को भी काम में लाने से प्रेम हो सकता है और चारों ही किये जायँ तो बहुत जल्दी प्रेम हो सकता है, और भी बहुत-से उपाय शास्त्रों में बतलाये गये हैं | यह चार मुख्य हैं—
सर्वधर्मान्परित्यज्य  मामेकं  शरणं   व्रज |
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ||
(गीता १८ | ६६)
इस श्लोक के चार चरण हैं जिनमें भगवान् ने चार बातें कहीं है—
(१) सारे धर्मों का त्याग (२) मेरी शरण आ जा (३) मैं सारे पापों से छुड़ा दूँगा (४) शोक मत कर |
    ये चार बातें सारी गीता का सार हैं, इसीलिए ये शेष में कही गयी हैं |
यह गीता का उपसंहार है | जिस विषय में उपक्रम होता है, उसी में उपसंहार होता है | गीता में सार बात भगवान् की शरण होना ही है | भगवान् आरम्भ में ‘अशोच्यानन्वशोचस्त्वं’ और अन्त में ‘मा शुचः’ कहते हैं |
    भगवान् तो सबकी बागडोर हाथ में लेने के लिए तैयार हैं | जिस समय हमारे सारे काम भगवान् की आज्ञानुकुल होने लगें तो समझना चाहिए कि हमारी बागडोर प्रभु के हाथ में है | सबसे उत्तम सिद्धान्त यह है कि हम तो निमित्तमात्र हैं, भगवान् ही सारे कर्म करा रहे हैं | उसकी पहचान यही है कि सारे कर्म भगवान् के अनुकूल हो रहे हैं | हमलोगों को निमित्तमात्र बन जाना चाहिए | भगवान् करायें वैसे ही करना चाहिए | भगवान् विपरीत कर्म कभी नहीं कराते |.........शेष अगले ब्लॉग में

श्रद्धेय जयदयाल गोयन्दका सेठजी, ‘आध्यात्मिक प्रवचन’ पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर
 नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!