|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, त्रयोदशी-चतुर्दशी, बुधवार, वि० स० २०७०
श्रद्धालु
मनुष्य के लिये तो महात्मा का प्रभाव माने जितना ही थोडा है; क्योंकि महात्मा का
प्रभाव अपरिमेय है ।
महापुरुषों
के प्रभाव से भगवान् की प्राप्ति होना — यह तो उनका अलौकिक प्रभाव है तथा सांसारिक
कार्य की सिद्धि होना — लौकिक प्रभाव है ।
महापुरुषों
की चेष्टा उनके तथा लोगों के प्रारब्धसे होती है एवं लोगों के श्रद्धा-प्रेम तथा
ईश्वराज्ञा से भी होती हैं ।
सर्वस्व
जाय तो भी कभी किसी निमित्तसे कहीं किन्चिन्मात्र भी पाप न करे, न करवावे और न
उसमे सहमत ही हो ।
पैसे न्याय
से ही पैदा करे, अन्याय से कभी नहीं, चाहे भूखों मरना पड़े ।
ईश्वर
भक्ति और धर्म को कभी छोड़े ही नहीं,प्राण भले ही चले जायँ ।
धैर्य,क्षमा,मनोनिग्रह,अस्तेय,
बाहर-भीतर की पवित्रता, इन्द्रियनिग्रह, सात्त्विकबुद्धि, अध्यात्मविद्या,
सत्यभाषण, और क्रोध न करना— ये दस सामान्य धर्मके लक्षण हैं ।
विपत्तिमें
भगवान् की स्मृति बनी रहे, इसलिये कुन्तीने भगवान् से निरंतर विपत्तिके लिये
प्रार्थना की ।
पाण्डवोंने
अपनेसे निम्नश्रेणी के राजा विराटकी नौकरी स्वीकार कर ली, पर धर्म का किंचिन्मात्र
भी कभी त्याग नहीं किया ।
महाराज
युधिष्ठिरने स्वर्गको ठुकरा दिया, पर अपने अनुगत कुत्तेका भी त्याग नहीं किया ।
—श्रद्धेय जयदयाल जी गोयन्दका-सेठजी , सत्संग की कुछ सार बातें पुस्तकसे, गीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!