※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

बुधवार, 24 अप्रैल 2013

सत्संग की कुछ सार बातें-१०-


|| श्रीहरिः ||
आज की शुभतिथि-पंचांग
चैत्र शुक्ल, त्रयोदशी-चतुर्दशी,  बुधवारवि० स० २०७०



श्रद्धालु मनुष्य के लिये तो महात्मा का प्रभाव माने जितना ही थोडा है; क्योंकि महात्मा का प्रभाव अपरिमेय है ।

महापुरुषों के प्रभाव से भगवान् की प्राप्ति होना — यह तो उनका अलौकिक प्रभाव है तथा सांसारिक कार्य की सिद्धि होना — लौकिक प्रभाव है ।

महापुरुषों की चेष्टा उनके तथा लोगों के प्रारब्धसे होती है एवं लोगों के श्रद्धा-प्रेम तथा ईश्वराज्ञा  से भी होती हैं ।

सर्वस्व जाय तो भी कभी किसी निमित्तसे कहीं किन्चिन्मात्र भी पाप न करे, न करवावे और न उसमे सहमत ही हो ।

पैसे न्याय से ही पैदा करे, अन्याय से कभी नहीं, चाहे भूखों मरना पड़े ।

ईश्वर भक्ति और धर्म को कभी छोड़े ही नहीं,प्राण भले ही चले जायँ ।

धैर्य,क्षमा,मनोनिग्रह,अस्तेय, बाहर-भीतर की पवित्रता, इन्द्रियनिग्रह, सात्त्विकबुद्धि, अध्यात्मविद्या, सत्यभाषण, और क्रोध न करना— ये दस सामान्य धर्मके लक्षण हैं ।

विपत्तिमें भगवान् की स्मृति बनी रहे, इसलिये कुन्तीने भगवान् से निरंतर विपत्तिके लिये प्रार्थना की ।

पाण्डवोंने अपनेसे निम्नश्रेणी के राजा विराटकी नौकरी स्वीकार कर ली, पर धर्म का किंचिन्मात्र भी कभी त्याग नहीं किया ।

महाराज युधिष्ठिरने स्वर्गको ठुकरा दिया, पर अपने अनुगत कुत्तेका भी त्याग नहीं किया ।

श्रद्धेय जयदयाल जी गोयन्दका-सेठजी , सत्संग की कुछ सार बातें पुस्तकसेगीताप्रेस गोरखपुर
नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!