※हमको तो 60 वर्षों के जीवनमें ये चार बातें सबके सार रूप में मिली हैं - 1. भगवान् के नामका जप 2. स्वरुपका ध्यान 3. सत्संग(सत्पुरुषोंका संग और सत्त्-शास्त्रोंका मनन) 4. सेवा ※ जो ईश्वर की शरण हो जाता है उसे जो कुछ हो उसीमें सदा प्रसन्न रहना चाहिये ※ क्रिया, कंठ, वाणी और हृदयमें 'गीता' धारण करनी चाहिये ※ परमात्मा की प्राप्तिके लिए सबसे बढ़िया औषधि है परमात्माके नामका जप और स्वरुपका ध्यान। जल्दी-से-जल्दी कल्याण करना हो तो एक क्षण भी परमात्माका जप-ध्यान नहीं छोड़ना चहिये। निरंतर जप-ध्यान होनेमें सहायक है -विश्वास। और विश्वास होनेके लिए सुगम उपाय है-सत्संग या ईश्वरसे रोकर प्रार्थना। वह सामर्थ्यवान है सब कुछ कर सकता है।

रविवार, 19 मई 2013

ध्यानावस्था में प्रभु से वार्तालाप -१-




     
      || श्रीहरिः ||

आज की शुभतिथि-पंचांग

वैशाख शुक्ल, नवमी, रविवार, वि० स० २०७०

ध्यानावस्था में प्रभु से वार्तालाप -१-

साधक एकान्त और पवित्र स्थान में कुश या ऊन के आसन पर स्वस्तिक, सिद्ध या पद्यासन आदि किसी आसन से स्थिर, सीधा और सुखपूर्वक बैठे और इद्रियों को विषयों से हटाकर सम्पूर्ण संसारिक कामनाओं का त्याग करके स्फुरणा से रहित हो जाय | पश्चात आलस्यरहित और वैराग्ययुक्त पवित्र चित से अपने इष्टदेव का आह्वाहन करे | यह ख्याल रखना चाहिये की जब ध्यानावस्था में भगवान आते है तब नेत्रों को बंद करने पर चित में बड़ी प्रसन्नता, शन्ति, ज्ञानकी दीप्ति एवं सारे भूमण्डल में महाप्रकाश प्रयत्क्ष सा प्रतीत होता है | जहाँ शान्ति है वहां विक्षेप नहीं होता और जहाँ ज्ञान की दीप्ति होती है, वहाँ निंद्रा-आलस्य नहीं आते | और यह विश्वास रखना चाहिये की भगवान से स्तुति और प्रार्थना करने पर ध्यानावस्था में भगवान आते है | अपन इष्ट देव का साकार रूप से ध्यान करने में कोई कठिनाई भी नहीं है | यदि कहों की देखि हुई चीज का ध्यान होना सहज है, बिना देखि हुई चीज का ध्यान कैसे हो सकता है  ? सो ठीक है; किन्तु शास्त्र और महात्माओं के वचनों के आधार पर तथा अपने इष्टदेव के रुचिकर चित्र के आधार पर भी ध्यान हो सकता है | इसलिए साधक को उचित है की नेत्रों को मूदकर अपने इष्टदेव परमेश्वर  का  आह्वाहन करे और साधारण आह्वाहन करने से न आने पर उनके नाम और गुणों का कीर्तन एवं दिव्य स्त्रोत और पदों के द्वारा स्तुति और प्रार्थना करते हुए श्रद्धा और प्रेमपूर्वक करुणाभाव से गदगद होकर भगवान को पुन:-पुन: आह्वाहन करे और भगवान के आने की आशा और प्रतीक्षा रखते हुए इस चौपाई का उच्चारण करे

एक बात मैं पूछहूँ तोही |   कारन कवन बिसारेहु मोहि ||

....शेष अगले ब्लॉग में .     

श्रद्धेयजयदयाल गोयन्दका सेठजी, तत्त्वचिंतामणि पुस्तक से, गीताप्रेस गोरखपुर, उत्तरप्रदेश , भारत  

नारायण ! नारायण !! नारायण !!! नारायण !!! नारायण !!!